नई दिल्ली। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सोमवार को लगातार 34वें दिन सुनवाई हुई। मामले के एक पक्षकार रामलला विराजमान ने शीर्ष अदालत से कहा कि वह इस मामले में किसी भी तरह की मध्यस्थता नहीं चाहते हैं। वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथ ने पांच जजों की पीठ को यह बात बताई।
यह स्पष्टीकरण ऐसे समय पर आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल को दो मुस्लिम पक्षों के अनुरोध पर भूमि विवाद को समझौते के जरिए निपटाने के लिए अपने प्रयासों को जारी रखने की अनुमति दे दी है। लेकिन, कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि सभी पक्ष अपनी दलीलें 18 अक्तूबर तक समाप्त कर लें। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि यह एक समानांतर प्रक्रिया होगी और पीठ अपनी सुनवाई को जारी रखेगी।
उधर, मुस्लिम पक्षकारों की ओर से वकील शेखर नाफड़े ने दलीलें रखते हुए कहा कि वह समझते हैं कि कोर्ट पर मामला जल्द से जल्द समय पर खत्म करने का दबाव है। उन्होंने कहा, “माय लॉर्ड, मैं आज कोर्ट का ज्यादा समय न लेते हुए कोशिश करूंगा कि सारांश में अपनी बात कोर्ट के समक्ष कम समय में रख दूं।” शेखर नाफड़े ने कहा कि 1885 में विवादित जमीन के केवल एक हिस्से पर दावा किया गया था और अब पूरी जगह का दावा किया जा रहा है। सवाल यह है कि 1885 में महंत रघुबर दास ने जो सूट दायर किया था वह पूरे हिंदुओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे या नहीं। शेखर नाफड़े रेस ज्युडिकेटा पर दलील दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि महंत रघुबर दास ने 1885 में अगर व्यक्तिगत हैसियत से सूट दायर किया था तब रेस ज्युडिकेटा लागू नहीं होगा।
नाफड़े ने कहा कि रघुबरदास के महंत होने को सभी ने माना और उसको किसी ने भी चैलेंज नहीं किया था। 1885 का फैसला भी यही कहता है। सवाल यह नहीं कोर्ट ने क्या कहा, सवाल यह है कि याचिकाकर्ता ने कोर्ट को क्या बताया? निर्मोही अखाड़ा ने भी उनको महंत माना था।