Supreme Court 1

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंदिरों की संपत्ति को लेकर एक बड़ा फैसला दिया है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा है, “मंदिर के पुजारी को भूस्वामी नहीं माना जा सकता, देवी-देवता ही मंदिर से जुड़ी भूमि के मालिक हैं।” न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि पुजारी केवल मंदिर की संपत्ति के प्रबंधन के उद्देश्य से भूमि से जुड़े काम कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट  ने कहा, “स्वामित्व स्तंभ में केवल देवता का नाम ही लिखा जाए क्योंकि देवता एक न्यायिक व्यक्ति होने के कारण भूमि का स्वामी होता है। भूमि पर देवता का ही कब्जा होता है जिसके काम देवता की ओर से सेवक या प्रबंधकों द्वारा किए जाते हैं। इसलिए प्रबंधक या पुजारी के नाम का जिक्र स्वामित्व स्तंभ में करने की आवश्यकता नहीं है।”

शीर्ष अदालत की दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि इस मामले में कानून स्पष्ट है कि पुजारी काश्तकार मौरुशी, (खेती में काश्तकार) या सरकारी पट्टेदार या मौफी भूमि (राजस्व के भुगतान से छूट वाली भूमि) का एक साधारण किरायेदार नहीं है। उसे औकाफ विभाग (देवस्थान से संबंधित) की ओर से ऐसी भूमि के केवल प्रबंधन के उद्देश्य से रखा जाता है। पीठ ने कहा, “पुजारी केवल देवता की संपत्ति का प्रबंधन करने के प्रति उत्तरदायी है। यदि पुजारी अपने कार्य करने में, जैसे प्रार्थना करने तथा भूमि का प्रबंधन करने संबंधी काम में विफल रहा तो उसे बदला भी जा सकता है। इस प्रकार उसे भूस्वामी नहीं माना जा सकता।”

पीठ ने कहा, “हम ऐसा कोई फैसला नहीं देखते जिसमें राजस्व रिकार्ड में पुजारी या प्रबंधक के नाम का उल्लेख करने की जरूरत पड़ती हो। जिलाधिकारी को मंदिर की संपत्ति का प्रबंधक नहीं माना जा सकता क्योंकि उस पर मालिकाना हक देवताओं का है। मंदिर यदि राज्य से जुड़ा न हो तो जिलाधिकारी को सभी मंदिरों का प्रबंधक नहीं बनाया जा सकता।”

यह है मामला

सुप्रीम कोर्ट की पीठ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस आदेश में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा एमपी ला रेवेन्यू कोड, 1959 के तहत जारी किए गए दो परिपत्रों को रद्द कर दिया था। इन परिपत्रों में पुजारी के नाम राजस्व रिकार्ड से हटाने का आदेश दिया गया था, ताकि मंदिर की संपत्तियों को पुजारियों द्वारा की जाने वाली अनधिकृत बिक्री से बचाया जा सके।

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