केंद्र सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के बारे में नए सिरे से आंकड़े जुटागी। हालांकि यह कोई तुरत-फुरत में लिया गया निर्णय नहीं है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बीते वर्ष सितंबर में संसद में इसका उल्लेख किया था।

नई दिल्ली। आम चुनाव से ठीक पहले गरीब सवर्णों को आरक्षण का दांव खेलने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के बारे में नए सिरे से आंकड़े जुटाने का फैसला किया है। हालांकि यह कोई तुरत-फुरत में लिया गया निर्णय नहीं है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बीते वर्ष सितंबर में संसद में इसका उल्लेख किया था। नया निर्णय इसकी ही अगली कड़ी है। हालांकि इसमें नई बात यह होगी कि देश में पिछड़े वर्ग की गणना अलग से होगी।

गौरतलब है कि देश में अगली जनगणना 2021 में होनी है। इसके अंतर्गत ही ओबीसी की गणना अलग से होगी। इस तरह की मांग काफी समय से ओबीसी नेताओं की तरफ से भी उठाई जाती रही है। इसका उद्देश्य आरक्षण तथा विकास योजनाओं में उनकी सही भागीदारी सुनिश्चित करना है। 

2021 में जुटाए गए आंकड़ों को सामने आने में तीन वर्ष का समय लगेगा। यानि 2024 में इसकी विस्‍तृत तस्‍वीर सामने आ सकेगी। चूंकि सरकार के पास ओबीसी के बारे में सही आंकड़े नहीं हैं, लिहाजा इस बार की गणना में तकनीक की मदद भी ली जाएगी। यह तकनीक का ही कमाल होगा कि इन आंकड़ों को तीन साल में ही जारी कर दिया जाएगा। इससे पहले इस तरह के आंकड़े जारी करने में पांच से आठ वर्ष तक का समय लग जाता था। सूत्रों के अनुसार अगली जनगणना के दौरान सही-सही आंकड़ों को जुटाने के लिए के लिए 25 लाख लोगों को खास प्रशिक्षण दिया जाएगा।

मंडल कमीशन की सिफारिशों के आधार पर ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। दरअसल, मंडल कमीशन की रिपोर्ट 1931 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित थी। वर्ष 2006 में ओबीसी की आबादी 41 प्रतिशत बताई गई थी। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO)  की सन् 2006 में जारी एक सैंपल सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक भी  देश की कुल आबादी में से 41 प्रतिशत लोग ओबीसी वर्ग के हैं। इसके अलावा संप्रग सरकार ने वर्ष 2011 में सामाजिक-आर्थिक जातीय गणना भी कराई थी। 

क्यों लिया गया अलग से गणना का निर्णय ?

दरअसल, 2011 में कराई गई सामाजिक-आर्थिक जातीय गणना (सर्वेक्षण) में कई तरह की खामियां उजागर हुई थीं। इसमें देश में करीब 46 लाख जातियां बताई गई थीं। इसमें जातियों की उपजातियां और आम बोलचाल की भाषा में कही जाने वाली जातियों को भी दूसरी जातियों की तरह दर्ज कर लिया गया था। इसके अलावा इस काम में लगे लोगों को सर्वेक्षण के बारे में पर्य़ाप्त जानकारी न होने की वजह से आंकड़ों की सही तरह से दर्ज नहीं किया जा सका था।

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