नयी दिल्ली: कहते हैं कि सच को जितना छुपाने-दबाने की कोशिश की जाती है, वह उतनी ही प्रखरता से सामने आता है। कुछ ऐसा ही हो रहा है पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई झड़प के मामले में। चीन यहां मारे गये अपने सैनिकों की संख्या छिपाने की जितनी अधिक कोशिश करता है, उतने ही नये-नये तथ्य सामने आ जाते हैं। अब ऑस्ट्रेलियाई अखबार “द क्लैक्सन” में प्रकाशित एक खोजी रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि गलवान घाटी में जून 2020 में भारतीय और चीनी सेना के बीच की हिंसक झड़प में चीन के 38 सिपाहियों की मौत हुई थी। यह संख्या चीन की तरफ से बताई गई संख्या से 9 गुना ज्यादा है। झड़प में कर्नल संतोष बाबू समेत भारत के 20 जवान शहीद हो गये थे। इस रिपोर्ट को डेढ़ साल की रिसर्च के बाद तैयार किया गया है।
“द क्लैक्सन” ने इस पूरे मामले की जांच के लिए इंडिपेंडेंट सोशल मीडिया रिसर्चर्स की टीम तैयार की थी जिसने “गलवान डिकोडेड” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी है। एंथनी क्लान की अगुआई वाली इस स्पेशल रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए, PLA) के कई सिपाही उस रात गलवान नदी में बह गये थे।
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने इस झड़प के तथ्यों में हेर-फेर करने के लिए दो अलग अलग घटनाओं को आपस में जोड़ दिया था। चीन ने कभी भी गलवान में मारे गए सैनिकों की संख्या नहीं बताई है लेकिन पिछले साल उसने झड़प में मारे गए चार सैनिकों को मेडल देने की घोषणा की थी। रिसर्चर्स ने बताया कि 15-16 जून की रात में जीरो डिग्री तापमान में बहने वाली गलवान नदी में कई चीनी सैनिक डूब कर मर गए थे।
मीडिया रिपोर्ट में चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीबो के कई यूजर्स के ब्लॉग के आधार पर दावा किया गया है कि उस रात 38 चीनी सैनिक नदी में बह गये थे। बाद में चीनी अधिकारियों में इन सभी सोशल मीडिया पोस्ट को हटा दिया था। इन 38 लोगों में जूनियर सार्जेंट वांग झुओरान भी शामिल था, जिन्हें चीन ने मेडल देने की घोषणा की है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अप्रैल 2020 के आसपास चीनी सेना ने गलवान घाटी में निर्माण कार्य तेज कर दिए थे, लेकिन 15 जून की लड़ाई एक अस्थाई पुल पर शुरू हुई थी। भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच मई 2020 की शुरुआत में तिब्बत में पैंगोंग झील के पास भी झड़प हुई थी। चीन का सरकारी मीडिया इस झड़प और उसके बाद की घटनाओं को कवर करने में पूरी तरह से फेल रहा था। उसने बहुत सारे तथ्यों को छुपा लिया था और दुनिया को जो बताया वह ज्यादातर मनगढ़ंत कहानियां थीं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अप्रैल 2020 के बाद से चीन लगातार भारत के साथ हुए समझौते का उल्लंघन करते हुए बफर जोन में पैट्रोलिंग और अवैध निर्माण कर रहा था। जब कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में भारतीय जवानों ने गलवान नदी पर पुल का निर्माण करना शुरू किया तो भारतीय निर्माण का लक्ष्य चीन की गतिविधियों पर नजर रखना था। चीनी सैनिकों ने इसका विरोध किया। 6 जून को 80 चीनी सैनिक इस पुल का तोड़ने के प्रयास से आगे आए जबकि 100 भारतीय जवान इसे बचाने के लिए आगे बढ़े।
6 जून को भारत और चीनी सैनिकों के बीच समझौता हुआ कि दोनों सेनाएं बफर जोन से वापस जाएंगी। चीन ने इस समझौते का भी उल्लंघन कर दिया। 15 जून को जब कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में भारतीय सैनिक चीन की गतिविधियों को देखने के लिए आए तो उन पर चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया। इसके बाद दोनों सेनाओं के बीच झड़प हुई। हालात इतने खराब हो गए कि चार दशक बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी,LAC) पर पर गोलियां चलीं। झड़प में खुद को कमजोर होता देख चीनी सेना पीछे हटने लगी। ऐसे में चीनी सेना ने रात के अंधेरे में ही नदी में उतरकर उसे पार करने का फैसला किया। नदी का बहाव तेज हो गया और चीनी सैनिक बह गये।
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