बरेली।केंद्रीय मंत्री और भाजपा की वरिष्ठ नेता उमा भारती का जन्म 3 मई को हुआ। उमा भारती का विवादों से चोली-दामन का साथ रहा है। छोटी से उम्र में साध्वी बनकर बाद में राजनीति में अपना मुकाम बनाया। वो कमाल की स्पीकर हैं, और जब बोलना शुरू कर देती हैं तो लोग सिर्फ सुनते रहते जाते हैं। इनके तर्कों का कोई जवाब नहीं।
हिंदू महाकाव्यों की अच्छी जानकार उमा भारती का जन्म 3 मई, 1959 को टीकमगढ़, मध्यप्रदेश के एक लोधी राजपूत परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम उमा श्री भारती है। साध्वी के रूप में अपनी पहचान बना चुकी, उमा भारती का पालन-पोषण ग्वालियर की तत्कालीन राजमाता विजयराजे सिंधिया द्वारा हुआ था। केवल छठी कक्षा तक पढ़ी उमा भारती धार्मिक विषयों में बहुत अधिक रुचि रखती हैं जिसके कारण उमा भारती का संबंध देश के कई बड़े धार्मिक नेताओं से है। राजनीतिज्ञ और हिंदू धर्म प्रचारक होने के अलावा उमा भारती एक समाज सेवी भी हैं।
प्रतिभाशाली व्यक्तित्व
संघ परिवार से संबंधित उमा भारती बचपन से ही हिंदू धार्मिक ग्रंथों और महाकाव्यों में रुचि लेने लग गई थीं। परिणामस्वरूप उनके स्वभाव और व्यक्तित्व में उनकी इस विशेषता की झलक साफ दिखाई देती है। उमा भारती एक आत्म-विश्वासी और आत्म-निर्भर महिला हैं। साध्वी की भांति वेशभूषा धारण किए उमा भारती ने अविवाहित रहकर अपना जीवन धर्म के प्रचार-प्रसार में लगाने का निश्चय कर लिया है।
मध्यप्रदेश में भाजपा को शिखर तक पहुंचाया
उमा भारती का राजनैतिक सफर छोटी आयु में ही शुरू हो गया था। इसका सबसे बड़ा कारण सिंधिया परिवार से संबंध होना था। भारतीय जनता पार्टी से जुड़ने के बाद उमा भारती 1984 में पहली बार चुनाव लड़ीं, जिसमें उन्हें इंदिरा गांधी की हत्या के कारण उठी सहानुभूति लहर से हार का सामना पड़ा। लेकिन 1989 के चुनावों में जीत मिली। वर्ष 1991 में वह खुजराहो लोकसभा सीट से चुनाव लड़ीं, जिसमें उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी को हरा दिया। उसके बाद लगातार तीन बार वह इस सीट पर जीत दर्ज करती गयी।
उमा भारती ने विभिन्न मंत्रालयों का पदभार संभाला
उमा भारती ने वर्ष 1999 में भोपाल सीट से चुनाव लड़ा जिसमें उन्होंने जीत हासिल की। वाजपेयी सरकार में उमा भारती ने विभिन्न मंत्रालयों जैसे मानव संसाधन विभाग, पर्यटन, खेल और युवा मामले, कोयला और खाद्यान्न मंत्रालय का पदभार संभाला। वर्ष 2003 के चुनावों में उमा भारती मध्य-प्रदेश की मुख्यमंत्री बनाई गर्इं। उन्हीं के प्रयासों के परिणामस्वरूप भारतीय जनता पार्टी को मध्य-प्रदेश में तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त हुआ था।
जब करना पड़ा निलंबन का सामना
मुख्यमंत्री पद के कार्यकाल के दौरान उमा भारती पर कई गंभीर आरोप लगे। उनमें से एक में हुबली दंगों के आरोपों में घिरने के कारण वर्ष 2003 में मध्य-प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही महीनों बाद 2004 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा सौंप दिया। उमा भारती को बीजेपी से दो बार निलंबन का सामना करना पड़ा। सबसे पहले नवंबर 2004 में पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के विरोध में टेलीविजन पर बयान देने के लिए उन्हें निलंबित कर दिया गया। हालांकि जल्द ही वर्ष 2005 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के कहने पर उन्हें वापस बुला, पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी दल का सदस्य नियुक्त कर दिया गया।
वर्ष 2005 के अंत में पार्टी द्वारा शिवराज सिंह को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री निर्वाचित करने पर उन्होंने फिर भड़काऊ बयान दिए, जिसके कारण उन्हें एक बार फिर निलंबन का सामना करना पड़ा। उन्हें भारतीय जनता पार्टी में दोबारा शामिल कर लिया गया। उमा भारती की वापसी को लेकर शुरू से ही पार्टी में विरोधाभास की स्थिति थी। जून 2011 में उमा भारती को भारतीय जनता पार्टी में दोबारा शामिल कर लिया गया। लगभग छ: साल के लंबे अंतराल के बाद उमा भारती का आगमन भाजपा में हुआ था।
भोपाल से लेकर अयोध्या तक की कठिन पद-यात्रा
राम जन्म भूमि को बचाने के लिए उमा भारती ने कई प्रभावकारी कदम उठाएद्ध उन्होंने पार्टी से निलंबन के बाद, भोपाल से लेकर अयोध्या तक की कठिन पद-यात्रा की। साध्वी ऋतंभरा के साथ मिलकर अयोध्या मसले पर उन्होंने आंदोलन शुरू किया। उमा भारती ने इस आंदोलन को एक सशक्त नारा भी दिया- राम-लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे। जुलाई 2007 में रामसेतु को बचाने के लिए, उमा भारती ने सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट के विरोध में 5 दिन की भूख-हड़ताल भी की।
2014: लोक सभा के लिए चुनी गयीं और केंद्र मंत्री बनी
सन 2014 के लोक सभा चुनाव में उन्होंने झाँसी संसदीय क्षेत्र से विजय प्राप्त की और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुईं। मोदी सरकार में उन्हें जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गयी।
अयोध्या आंदोलन की फायर ब्रैंड नेता और केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने इस बार लोकसभा चुनाव न लड़ने के अपने फैसले पर दिलचस्प बयान दिया।उमा भारती ने बताया, ‘अपने जीवन में मैं तीन लोगों से बहुत प्रभावित रही हूं। वो हैं मार्क्सवादी क्रांतिकारी चे ग्वेरा, भगवान हनुमान और मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी से प्रभावित होकर उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में नहीं उतरने का निर्णय लिया है।
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