नई दिल्ली। करीब तीन दशक से निर्वासन झेल रहीं बांग्लादेश मूल की अंतरराष्ट्रीय ख्यति प्राप्त लेखिका तसलीमा नसरीन ने मुसलमानों का आह्वान किया है कि वे अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए धन जुटाने को आगे आएं।
अपने अत्यंत लोकप्रिय उपन्यास लज्जा के प्रकाशन के बाद से ही मुस्लिम कचट्टरपंथियों के निशाने पर रहीं तसलीमा ने ट्विटर पर लिखा है, “अयोध्या में राम मंदिर के लिए कई मुसलमान विहिप के अभियान में दान दे रहे हैं। मुसलमानों को मंदिर के लिए धन जुटाने के लिए आगे आना चाहिए। फैजाबाद के मूल निवासी वसी हैदर और शाह बानो ने 12 हजार रुपये और 11 हजार रुपये का दान दिया। इकबाल अंसारी ने कहा कि कि मैं राम मंदिर के लिए निश्चित रूप से दान दूंगा। अगर मुस्लिम दान करते हैं, तो इससे हिंदू-मुस्लिम सद्भाव मजबूत होगा और हिंदुओं के साथ उनके संबंध मजबूत होंगे।”
तसलीमा के इस ट्वीट के बाद से बहस छिड़ गई है। ज्यादातर लोगों ने उनकी खुलकर प्रशंसा की है लेकिन कुछ लोगों ने कहा है कि मुसलमानों से धनराशि इकट्ठा नहीं की जानी चाहिए।
तसलीमा नसरीन ने पहले कहा था कि भारत के अधिकतर हिंदू चाहते हैं कि राम मंदिर का निर्माण हो, इसलिए इसे बनने दें। मुसलमानों की तरह उन्हें भी पूरी तरह से धार्मिक और कट्टरपंथी होने का अधिकार है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि आप एक हिंदू हैं, तो आपको धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए, यह आवश्यक नहीं है। तसलीमा ने आगे कहा था, “मैंने भूमि पूजन देखा, उसी तरह जैसे काबा की परिक्रमा देखा, मीना की दीवार पर शैतान को पत्थर मारते देखा, सेंट पैट्रिक दिवस की परेड देखा, चर्च का उपदेश देखा, पुराने यरुशलम शहर में पश्चिमी दीवार पर यहूदियों को मत्था टेकते देखा। इसमें भाग लेना मेरा काम नहीं है। मेरा काम है सिर्फ देखना। राम मंदिर बनने से मैं न तो शोक मना रही हूं और न ही खुश हूं। भारत में ज्यादातर हिंदू चाहते हैं कि राम मंदिर का निर्माण हो, इसलिए इसे बनने दें।”
तसलीमा के इस बयान पर कोलकाता के टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम मौलाना बरकती ने कहा था कि बांग्लादेशी लेखिका ने हिंदुओं को सीधे ना बोल कर घुमा-फिरा कर कट्टरपंथी कहना चाहा है, जो कहीं से भी सही और जायज नहीं है। राम मंदिर मुद्दे पर हिंदुओं का धार्मिक अथवा कट्टरपंथी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।