नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल का 71 साल की उम्र में बुधवार को निधन हो गया। वह कुछ हफ्ते पहले कोरोना वायरस से संक्रमित हुए थे और आज सुबह अंतिम सांस ली। कांग्रेस को अहमद पटेल के निधन से बड़ा झटका लगा है क्योंकि वह न सिर्फ कांग्रेस के चाणक्य माने जाते थे, बल्कि ऐसे कई मौकों पर उन्होंने पार्टी के लिए “ट्रबल शूटर” की भूमिका निभाई थी। राजनीति के मझे खिलाड़ी अहमद पटेल को सोनिया गांधी का “राजनीतिक संकटमोचक” माना जाता था। जब भी कांग्रेस पार्टी खुद सोनिया गांधी किसी राजनीतिक संकट में होती थीं, अहमद पटेल पर्दे के पीछे से ही राजनीति की पटकथा लिख दिया करते थे और पार्टी को मुश्किल हालात से उबार लाते थे।
देश के राजनीतिक इतिहास में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने जितने भी शानदार प्रदर्शन किए और चुनाव जीते, उनमें अहमद पटेल का खासा योगदान माना जाता था। एक तरह से वह कांग्रेस के वह सेनापति थे जो मुश्किलों का सामना करने के लिए आगे की पंक्ति में खड़ा रहते थे। साल 2004 का लोकसभा चुनाव हो या 2009 का, उन दोनों चुनावों में अहमद पटेल के योगदान को कांग्रेस के साथ-साथ इस देश ने देखा है। इसके अलावा भी किसी विधानसभा चुनाव में अभी अगर पार्टी विषम परिस्थिति में होती थी, तो अहमद पटेल ही एक ऐसे नेता थे, जिन पर सोनिया गांधी को पूरा भरोसा होता था कि वे इस संकट से पार्टी को उबार देंगे। उन्होंने अपनी रणनीतिक कौशल से कई बार अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस की सरकार बनवाई, मगर कभी मंत्री नहीं बने।
राजनीतिक गलियारों में अहमद पटेल को “बाबू भाई”, “अहमद भाई” और “एपी” के नाम से जाना जाता था। दशकों तक वे कांग्रेस पार्टी के न सिर्फ मुख्य रणनीतिकार रहे, बल्कि मुश्किल से मुश्किल हालात में पार्टी को संकट से उबारने वाले महा रणनीतिकार भी रहे। उनके जाने से कांग्रेस पार्टी को उनकी कमी बहुत खलेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी अभी काफी मुश्किल दौर से गुजर रही है। पार्टी के भीतर ही असंतोष की आवाज निकल रही है और चुनावों में भी हार का सामना करना पड़ रहा है। अभी कांग्रेस में गांधी परिवार के नेतृत्व और कार्यशैली को लेकर पार्टी के भीतर से बगावत के सुर बाहर आ रहे हैं। अब ऐसी विषम परिस्थिति में पार्टी का दशकों पुराना खेवनहार चला गया, जिसकी कमी पार्टी को काफी दिनों तक खलेगी।
21 अगस्त 1949 को गुजरात के भरुच में जन्मे अहमद पटेल आठ बार सांसद रहे हैं। अहमद पटेल ने तीन बार लोकसभा सांसद के तौर पर भरुच का प्रतिनिधित्व किया और पांच बार राज्यसभा सांसद के तौर पर। गांधी परिवार के सबसे वफादार माने जाने वाले अहमद पटेल कांग्रेस में काफी ताकतवर नेता थे। ऐसा कहा जाता है कि जब पार्टी सत्ता में थी, तब उन्हें कई बार मंत्री बनने का प्रस्ताव मिला, मगर उन्होंने बार-बार ठुकरा दिया।
अहमद पटेल साल 2001 से 2017 तक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव रहे थे। 2018 में राहुल गांधी ने अध्यक्ष बनने के बाद अहमद पटेल को कोषाध्यक्ष बनाया था। वैसे 1996 से लेकर 2000 तक पटेल इसी पद पर थे। हालांकि, राहुल गांधी के नेतृत्व के दौरान भी अहमद पटेल आलाकमान और नेताओं के बीच में एक अहम कड़ी बने रहे। 10 साल के यूपीए सरकार में भले ही वह लो प्रोफाइल में रहे, मगर उन्होंने इस दौरान अहम भूमिका निभाई। साल 1985 में राजीव गांधी ने अहमद पटेल को ऑस्कर फर्नांडीस और अरुण सिंह के साथ अपना संसदीय सचिव बनाया था। उस समय इन तीनों को “अमर-अकबर-एंथनी” गैंग कहा जाता था। पहली बार अहमद पटेल तभी चर्चा में आए थे।
वर्ष 1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद प्रधानमंत्री बने पीवी नरसिम्हाराव ने अपने और 10 जनपथ के बीच सेतु के तौर पर अहमद पटेल का इस्तेमाल किया। इसके बाद सीताराम केसरी जब नरसिम्हाराव की जगह कांग्रेस अध्यक्ष बने तो अहमद पटेल कोषाध्यक्ष बने। 1998 में जब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनीं, तब उनके पावरफुल निजी सचिव विंसेंट जॉर्ज से अहमद पटेल की नहीं बनी और उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। सोनिया गांधी ने उन्हें मनाकर फिर से काम संभालने के लिए कहा और माना जाता है कि विंसेंट जॉर्ज की “ताकत” इसके बाद कम होने लगी।
यह उनका क्राइसिस मैनेजमेंट स्किल ही था कि कांग्रेस 2008 में विश्वास मत जीतने में सफल रही थी, जब वामपंथी दलों ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को लेकर यूपीए सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। कांग्रेस पार्टी में उन्होंने कई जिम्मेदारियों को निभाया था। जनवरी 1986 से अक्टूबर 1988 तक गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष रहने के अलावा, वह सितंबर 1985 से जनवरी 1986 तक और फिर मई 1992 से अक्टूबर 1996 तक दो बार पार्टी महासचिव रहे। साल 2017 में भाजपा और कांग्रेस के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुके राज्यसभा चुनाव में पटेल ने जीत हासिल की थी। पटेल ने इस तरह से गुजरात से अपना पांचवां कार्यकाल जीता था।
इमरजेंसी के के बाद हुए लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस पार्टी को करारा झटका लगा था, वैसे हालात में भी अहमद पटेल 1977 में 26 साल की उम्र में भरुच से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने थे। उनकी जीत से राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई थी। इसके बाद 1980 और 1984 में इसी भरुच सीट से जीतकर सांसद पहुंचे थे। उन्हें कई बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने का प्रस्ताव मिला, मगर उन्होंने कांग्रेस पार्टी को मजबूती देने को प्राथमिकता दी। दशकों तक कांग्रेस पार्टी के लिए उन्होंने काम किया, मगर कभी वह मंत्री नहीं बने।
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