नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने कोरोना काल में मास्क नहीं पहनने वालों पर गुरुवार को बेहद सख्त टिप्पणी की। पीठ ने कहा, “जो लोग मास्क नहीं पहन रहे हैं, वे अन्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों (जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार) का उल्लंघन कर रहे हैं।” हालांकि अदालत ने बगैर मास्क के पकड़े जा रहे लोगों को कोरोना मरीजों के सुविधा केन्द्रों में सामुदायिक सेवा के लिए भेजने के गुजरात हाईकोर्ट के निर्देश को अत्यंत सख्त मानते हुए उस पर रोक लगा दी। पीठ ने गुजरात सरकार की इस दलील का संज्ञान लिया कि हाईकोर्ट का आदेश बहुत सख्त है और इससे, उल्लंघनकर्ताओं की सेहत पर गंभीर असर पड़ सकता है।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने मास्क लगाने और सामाजिक दूरी संबंधी दिशानिर्देशों के सख्ती से क्रियान्वयन को लेकर केंद्र और पक्षकारों से सुझाव देने को कहा है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि मास्क लगाने और सामाजिक दूरी के नियम संबंधी कोविड-19 के दिशानिर्देशों का उल्लंघन होने पर चिंतित हैं।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि राज्य को अनिवार्य रूप से मास्क पहनने के लिए केंद्र द्वारा जारी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को सख्ती से लागू करना चाहिए और कोविड-19 के संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए सामाजिक दूरी बनाए रखनी चाहिए। हमने यह देखा है कि राज्य में लोग हजारों की संख्या में एकत्रित हो रहे थे और ऐसी सभाओं को रोकने की भी कोई व्यवस्था नहीं थी।
शीर्ष अदालत ने इस बात पर भी गहरी नाराजगी व्यक्त की कि कोविड-19 के निर्देशों का राज्य में सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है। न्यायालय ने राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा मास्क पहनने और सामाजिक दूरी बनाने संबंधी दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन हो।
पीठ ने राज्य में पुलिस और दूसरे प्रशासनिक अधिकारियों को भी आदेश दिया कि इन दिशा निर्देशों पर सख्ती से अमल सुनिश्चित किया जाए और इनका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। शीर्ष अदालत इस संबंध में गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही थी।