मंजूषा कला मंजूषा कला नयी दिल्ली। रंगों की अपनी भाषा है और रेखाओं की अपनी धुन। लय में गोते लगाती रेखाओं को जब रंगों के शब्द मिल जाते हैं, तो सुपरिचित चित्रकार प्रीतिमा वत्स के चित्र लोक से संवाद करने लगते हैं। उनका बचपन झारखंड के गोड्डा जिले के एक छोटे-से गांव लुकलुकी में बीता है। इसलिए उनके चित्र-सृजन में लोक प्रभावशाली मार्गदर्शक भूमिका में नज़र आता है।

अपनी कला-यात्रा में प्रीतिमा ने लोक कलाओं के उद्देश्य और रंगों को लेकर नवीन प्रयोग किये हैं। बिहार की मंजूषा कला के मौन को अपनी रेखाओं और रंगों से शब्द देते उनके चित्रों की प्रदर्शनी दिल्ली के एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर की कला-दीर्घा में 21 नवम्बर से लगेगी। 28 नवम्बर तक चलने वाली प्रदर्शनी का मीडिया पार्टनर विकिलीक्स फॉर इंडिया है।

इस दौरान प्रीतिमा के चित्रों का अवलोकन कथाकार अजित कौर, चित्रकार अर्पणा कौर एवं देव प्रकाश चौधरी, डॉ. संजीव सिंह, देवशंकर नवीन, अरविन्द कुमार, विजय किशोर मानव, सत्येन्द्र उपाध्याय आदि करेंगे।

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