दिल्ली में जुटे देशभर के किसान, हाथों में खोपड़ी और बैनर लेकर किया संसद मार्च

नयी दिल्ली। गुरुवार की दोपहर दिल्ली का जंतर-मंतर पूरे भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा था। कश्मीर से कन्या कुमारी तक के हजारों किसान अपने हक के लिए जुटे। वहीं विपक्ष में मौजूद राष्ट्रीय से लेकर क्षेत्रीय पार्टियों के तमाम नेता उनका प्रतिनिधित्व करने की कोशिश में लगे थे। फसलों का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य हो या कर्ज माफी, पानी की समस्या हो या मंडियों पर ठेकेदारों का आतंक हर राज्य से आए किसान इन्हीं मुद्दों से त्रस्त थे।

पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर से आई रत्ना विश्वास कहती हैं कि खेती-किसानी चौपट हुई तो एक स्कूल में मिड डे मील का खाना बनाने लगीं। दिन का 50 रुपये मिलता है। उनके घर में 6 सदस्य हैं, पति विकलांग है। जीवन कैसे चलाएं? बेटी बीमार होती है तो दवा नहीं दिला पाती, बेटा दूध मांगता है तो मुंह में रोटी ठूस देती हूं। यहां टीशन (स्टेशन) पर उतरे तो गाड़ी (ऑटो) वाला 200 रुपया रामलीला मैदान चिल्ला रहा था। हम 50 रुपये मैं कैस घर चलाएं, आप ही बताइए। गूलचंद मार्डी कहते हैं कि 1.5 बिस्वा जमीन में कुछ नहीं उपज रहा था तो स्वच्छ भारत अभियान में जुट गए। 2 महीने दिन के 191 रुपये के हिसाब से पैसा मिला, फिर बंद हो गया। साल भर से पाई-पाई के लिए जूझ रहे हैं। कहीं से पैसा नहीं मिल रहा है।

किसानों की खुदकुशी की एक ही वजह- ऋण न चुका पाना

अश्विनी के पिता डी. रमेश कपास की खेती करते थे और उन्होंने साल 2003 में खुदकुशी कर ली। 12 वर्षों के बाद, रमैया के पिता पी. चंद्रैया, वे भी कपास की खेती करते थे। उन्होंने साल 2015 में खुद को मौत को गले लगा लिया। दोनों ही किसानों की खुदकुशी की एक ही वजह थी- ऋण न चुका पाना।

तेलंगना के वारंगल जिले से आई दो लड़कियां अपने मृत पिता की फोटो हाथ में लेकर गुरूवार को रामलील मैदान में उन किसानों के साथ मार्च कर रहे थे जो ‘किसान मुक्ति मोर्चा’ के बैनर तले राजधानी में किसान दो दिवसीय प्रदर्शन में हिस्सा लेने आए हैं। साथ ही, संसद में कृषि समस्या पर बहस के लिए तीन हफ्ते के विशेष सत्र की मांग कर रहे हैं।

अश्विनी नाम के एक मजदूर ने टूटी-फूटी हिंदी और अंग्रेजी में बोलते हुए कहा- “हमने कुछ एकड़ जमीन पट्टे पर लेकर उसमें कपास की खेती की। हमें इसमें कोई फायदा नहीं हुआ और मेरे पिता जमीन के मालिक को पैसा चुकान में असमर्थ थे। इसलिए, वे इस भार को बर्दाश्त नहीं कर पाए और खुदकुशी कर ली।”

कृषि संकट पर 21 दिनों के विशेष सत्र की मांग

बीस वर्षीय अश्विनी और रमैया की तरह देश भर से आए हजारों किसानों ने महाराष्ट्र के मुंबई में प्रदर्शन के करीब एक हफ्ते बाद ठीक उसी तरह शांतिपूर्ण मार्च में दिल्ली के रामलीला मैदान में हिस्सा लिया।

कई किसान नेता सेंट्रल दिल्ली के जंतर-मंतर में अपना संबोधन कर रहे हैं। इसके साथ ही, कई रानजीतिक दलों के प्रतिनिधि दो दिवसीय किसान मुक्ति मोर्चा में अपना भाषण देंगे, जहां पर संसद में कृषि संकट पर 21 दिनों के विशेष सत्र की मांग की जा रही है।

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