याचिका में 21 दिसंबर के फैसले पर तुरंत रोक लगाने की मांग की गई है। इसमें कहा गया है कि न्याय के हित में इमारत खाली करने के आदेश पर रोक लगाना जरूरी है।
नई दिल्ली। नेशनल हेराल्ड मामले में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) ने सिंगल बेंच के आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दी है। याचिका में 21 दिसंबर के फैसले पर तुरंत रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि न्याय के हित में इमारत खाली करने के आदेश पर रोक लगाना जरूरी है। रोक नहीं लगी तो यह कभी न पूरा होने वाला नुकसान होगा। याचिका पर चार फरवरी को सुनवाई होगी। वहीं, नेशनल हेराल्ड हाउस को खाली करने के फैसले के खिलाफ दायर एजीएल की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट 15 के बजाय 16 जनवरी को सुनवाई करेगा। दरअसल, कांग्रेस नेता व वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी की गुजारिश पर कोर्ट ने यह तारीख दी है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने बीती 21 दिसंबर को कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए कांग्रेस के मुखपत्र नेशनल हेराल्ड के दिल्ली स्थित कार्यालय को खाली करने के केंद्र के आदेश को चुनौती देने वाली एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की याचिका खारिज कर दी थी। इसी के साथ ही हाई कोर्ट ने दो सप्ताह में हेरल्ड हाउस खाली करने का आदेश दिया था। एजेएल पर आरोप था कि पिछले 10 साल से इमारत में नेशनल हेराल्ड अखबार के प्रकाशन नहीं हो रहा था। एजेएल के पास हाई कोर्ट की डबल बेंच और सुप्रीम कोर्ट में अपील का विकल्प था जिसका उसने इस्तेमाल किया।
सुनवाई के दौरान केंद्र और भूमि एवं विकास कार्यालय (एलडीओ) ने कहा था कि 10 साल से परिसर में कोई प्रेस इकाई काम नहीं कर रही है और इसका पट्टा समझौते का उल्लंघन करके केवल वाणिज्यिक उद्देश्यों से इस्तेमाल किया जा रहा था। एजेएल ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर आरोपों को खारिज किया था। न्यायमूर्ति सुनील गौर ने 56 साल पुराना पट्टा समाप्त करने के केंद्र के 30 अक्टूबर के आदेश को चुनौती देने वाली अपील खारिज करते हुए फैसला सुनाया था कि एजेएल दो सप्ताह में आइटीओ स्थित परिसर को खाली करे। उसके बाद अनधिकृत कब्जाधारियों को बेदखल करने की प्रक्रिया शुरू होगी। वहीं, एजेएल ने कहा था कि 2016 में वेब संस्करण शुरू किया गया था। अप्रैल 2018 तक सरकार शांत रही और फिर निरीक्षण के लिए नोटिस भेजा। कई बड़े अखबार अन्य स्थानों पर प्रिंटिंग का काम करते हैं।
गौरतलब है कि एजेएल नेशनल हेराल्ड अखबार की मालिकाना कंपनी है। कांग्रेस ने 26 फरवरी 2011 को इसकी 90 करोड़ की देनदारी अपने जिम्मे ले ली थी, यानी कंपनी को 90 करोड़ का ऋए दिया। इसके बाद पांच लाख रुपये में यंग इंडियन कंपनी बनाई गई जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी की बड़ी हिस्सेदारी (38-38 फीसद) व शेष कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा व ऑस्कर फर्नाडीज के पास है। बाद में एजेएल के 10-10 रुपये के नौ करोड़ शेयर यंग इंडियन को दिए गए। बदले में यंग इंडियन को कांग्रेस का ऋण चुकाना था। नौ करोड़ शेयर के साथ यंग इंडिया को कंपनी के 99 फीसद शेयर हासिल हो गए। इसके बाद कांग्रेस ने 90 करोड़ का ऋण माफ कर दिया। यानी यंग इंडियन को मुफ्त में एजेएल का स्वामित्व मिल गया।
दिल्ली स्थित नेशनल हेराल्ड हाउस को खाली कराने से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुनाया था। जस्टिस सुनील गौर की पीठ ने अपने फैसले में दो सप्ताह का समय देते हुए नेशनल हेराल्ड हाउस को खाली करने के लिए कहा है।
गौरतलब है कि नेशनल हेराल्ड की कंपनी एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर नेशनल हेराल्ड हाउस की लीज रद करने के फैसले को चुनौती दी थी। इससे पहले केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए तुषार मेहता ने कहा था कि इंडियन एक्सप्रेस बिल्डिंग से जुड़ा आदेश इस मामले में गलत तरीके से कोड किया गया है। उन्होंने तर्क दिया था कि सार्वजनिक संपत्ति को जिस वजह से दिया गया, वह काम हेराल्ड हाउस में कई सालों से किया ही नहीं जा रहा है। ऐसे में यह कहना पूरी तरह से गलत है कि नेहरू की विरासत को खत्म करने की कोशिश हो रही है। हेराल्ड हाउस की लीज रद करने से पहले कई बार नोटिस दिया गया था।
इससे पहले 10 सितंबर को दिल्ली हाई कोर्ट ने भी 2011-12 के टैक्स आकलन के मामले को दोबारा खोले जाने के मसले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी को राहत देने से साफ इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि कर संबंधी पुराने मामलों की आयकर विभाग फिर से जांच कर सकता है। इस फैसले को दोनों नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। दोनों ने नेशनल हेराल्ड और यंग इंडिया से जुड़े कर आकलन की दोबारा जांच के आयकर विभाग के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। ।
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1938 में अंग्रेजी अखबार नेशनल हेराल्ड अखबार की नींव रखी थी। यह लखनऊ एवं नई दिल्ली से प्रकाशित होता था। इसे कांग्रेस का मुखपत्र माना जाता था। इंदिरा गांधी के समय जब कांग्रेस में विभाजन हुआ तो इसका स्वामित्व इंदिरा कांग्रेस (आई) को मिला। खराब आर्थिक हालात के चलते 2008 में इसका प्रकाशन बंद हो गया।
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