नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर सुनवाई से इन्कार कर दिया जिसमें यह मांग की गई थी कि जो फर्जी बाबा या फर्जी आध्यात्मिक गुरु हैं, उनके आश्रम को बंद किया जाए। इस याचिका की सुनवाई पर फैसला करने के लिए बैठे मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा कि कोर्ट कैसे तय करेगा कि ये बाबा फर्जी है या नहीं। इस मामले में याचिककर्ता ने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की सूची पेश की जिसमें उसने फर्जी बाबाओं की जानकारी दी है।
न्यायमूर्ती बोबडे ने कहा, “हम नहीं जानते कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद क्या है। हम किसी भी अखाड़े का अपमान नहीं कर रहे हैं। जो सूची बनाई गई है क्या उसमें बाबाओं का पक्ष सुना गया था? यह हम नहीं जानते। ये किसी ठेकेदार की सूची नहीं है कि उसे ब्लैकलिस्ट किया जाए।”
याचिककर्ता ने राम रहीम का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे बाबाओं की सूची है जिसमें कई लोग दोषी और कई भगोड़े हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “हम इस बाबत कुछ नहीं कर सकते। आप केंद्र सरकार को ज्ञापन दें। वे इसे देखेंगे।” याचिककर्ता ने याचिका वापस ले ली है।
यह था मामला
बीचे वर्ष जुलाई में देशभर में फर्जी बाबाओं के 17 आश्रम-अखाड़ों में महिलाओं से संबंधित आपराधिक गतिविधियों के आरोपों और इन आश्रम व अखाड़ों रह रही महिलाओं के बीच कोरोना महामारी फैलने के ख़तरे को लेकर दायर एक युवती के पिता की याचिका को सुप्रीम कोर्ट सुनने के लिए तैयार हुआ था। यह याचिका तेलंगाना निवासी एक व्यक्ति ने दाखिल की थी जिसमें कहा गया था कि जुलाई 2015 में उनकी बेटी विदेश से डॉक्टरी की उच्च शिक्षा की पढ़ाई करके आई थी,। वह दिल्ली में एक फर्जी बाबा वीरेंद्र दीक्षित के चुंगल में फंस गई और पिछले पांच सालों से इस बाबा के दिल्ली के रोहिणी इलाक़े में बने आश्रम आध्यात्मिक विद्यालय में रह रही है। यह बाबा बलात्कार के आरोप में तीन साल से फ़रार चल रहा है।
इस याचिका में कहा गया था, “अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने देशभर में 17 आश्रम व अखाड़े को फर्जी करार दिया है। इनमें ज़्यादातर अवैध निर्माण वाली बिल्डिंग में चल रहे हैं जहां रहने लायक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। इनमें लड़कियां और महिलाएं रह रही हैं जिनकी हालात जेल के क़ैदियों से भी बदतर है। कोरोना संकट काल में इन आश्रम और अखाड़े में कोरोना फैलने का ख़तरा बना हुआ है, इसलिए यहां रह रही लड़कियों और महिलाओं को इन आश्रम व अखाड़ों से सुरक्षित बाहर निकाला जाए।”