अजमेर। (Eid-ul-Azha 2020) कल रात (मंगलवार को) चांद दिखने के बाद से शुरू होने जा रहे जिलहज माह के दौरान शुक्रवार 31 जुलाई को ईद-उल-अजहा (कुरबानी की ईद) मनाया जाएगा। हालांकि इस बारे में घोषणा चांद दिखने के बाद ही की जाएगी। जुल हिज्ज महीने के पहले दिन मंगलवार को चांद दिखा तो ईद-उल-अजहा 31 जुलाई को मनाया जाएगा। पहले दिन चांद नहीं दिखने पर ईद-उल-अजहा एक दिन बाद मनाया जाता है।
ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पर इस मौके पर बड़ी संख्या में अकीदतमंद उमड़ते है लेकिन इस बार कोरोना वायरस संक्रमण के चलते दरगाह में प्रवेश बंद है। इस कारण ईद-उल-अजहा रस्मी तौर पर ही मनाया जा सकेगा। हर साल इस मौके पर जम्मू-कश्मीर, काठियावाड़ के साथ राजस्थान के बाड़मेर एवं जैसलमेर से अजमेर शरीफ आने वाले अकीदतमंद इसे छोटे हज के रूप में भी हाजिरी लगाने से वंचित रहेंगे।
दरअसल जो लोग हज पर नहीं जा पाते हैं वे अजमेर शरीफ आकर ईद उल अजहा के मौके पर हाजिरी लगाकर छोटा हज मानते हुए अपनी धार्मिक आस्था व्यक्त करते हुए गरीब नवाज से मन्नत मांगते हैं। धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध और कोरोना वायरस मरीज की बढ़ती संख्या के मद्देनजर ईद-उल-अजहा पर जायरीनों एवं अकीदतमंदों की आवक बंद सी ही रहेगी। इस बीच ख्वाजा साहब की महानाछठी भी 27 जुलाई को रस्मी तौर पर ही मनाई जा सकेगी।
कब मनाया जाता है ईद उल अजहा
ईद-उल-अजहा का त्यौहार हिजरी के आखिरी महीने जुल हिज्ज में मनाया जाता है। पूरी दुनिया के मुसलमान इस महीने में मक्का (सऊदी अरब) में एकत्रित होकर हज मनाते हैं। ईद-उल-अजहा भी इसी दिन मनाया जाता है। वास्तव में यह हज की एक अंशीय अदायगी और मुसलमानों के भाव का दिन है। दुनियाभर के मुसलमानों का एक समूह इस दिन मक्का में हज करता है जबकि बाकी मुसलमानों के लिए यह अंतरराष्ट्रीय भाव का दिन बन जाता है।