नई दिल्ली। रक्षात्मक मुद्रा में रहने वाले भारत को भूल जाइए। आज का भारत आंख में आंख डालकर बात करता है और पटक कर मारता भी है जैसा कि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हो रहा है। एलएसी पर मई 2020 से जारी तनाव के बीच 15 जून से अब तक चीनी सेना के भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण करने के कम से कम चार प्रयास नाकाम हो चुके हैं। इन नापाक कोशिशों के दौरान ड्रैगन के दर्जनों सैनिक तो मारे ही गए, सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण तीन चोटियों (ब्लैक टॉप, गोस्वामी टॉप और हेलमेट टॉप) पर भारतीय जवानों ने अपने तंबू भी गाड़ दिए हैं जहां से वे निचाई वाले स्थानों पर मौजूद चीनी सैनिकों की हर गतिविध पर नजर रखे हुए हैं।
दरअसल, वर्ष 1962 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि पैंगोंग सो लेक क्षेत्र की तीन अहम चोटियों पर भारतीय सेना तैनात है। यहां से ड्रैगन की हर हरकतों नजर रखी जा सकती है। ऐसा पहली बार हुआ है कि एलएसी पर भारत का दबदबा है और चीन अपनी उखड़ती सांसों को काबू में करने की कोशिश करते हुए भारत को धमकाने का प्रयास कर रहा है। लेकिन, उसकी इन धमकियों को न तो भारत कोई भाव दे रहा है और ना ही बाकी दुनिया।
एलएसी पर तनातनी के बीच चीन की सरकार के “भोंपू” अखबार (मुखपत्र) ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख छापा है जिसमें कहा गया है कि भारत ने चीन के साथ संघर्ष जारी रखा तो उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि भारत के लिए एलएसी पर ऊंचाई पर बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती करना काफी खर्चीला होगा। हर दिन हथियारों और सामान की आपूर्ति से भारत की आर्थिक स्थिति पर भी बुरा असर पड़ेगा। सर्दी आने पर सेना की तैनाती का खर्च और भी ज्यादा बढ़ जाएगा। हालांकि सीडीएस बिपिन रावत ने दावा किया है कि सेना कड़ी सर्दी के लिए भी तैयार है लेकिन सैन्य आपूर्ति की भारी-भरकम लागत को देखते हुए इस तरह का आक्रामक रुख दिखाना बेकार है।
ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा है- चीन के साथ संघर्ष ना केवल भारत के विदेशी सहयोग को नुकसान पहुंचाएगा बल्कि औद्योगिक आपूर्ति चेन को भी प्रभावित करेगा। इससे भारतीय बाजार में भरोसा कमजोर होगा और निवेश-व्यापार दूर होता चला जाएगा। भारत को युद्ध की मंडराती छाया के आर्थिक असर का आकलन करना होगा क्योंकि सर्दी में एलएसी पर सेना की तैनाती का खर्च उसकी पस्त अर्थव्यवस्था वहन नहीं कर पाएगी।
“भोंपू” अखबार ने लिखा है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय बहुत ज्यादा दबाव में हैं क्योंकि इस वित्तीय वर्ष में जीडीपी में रिकॉर्ड 10 प्रतिशत की गिरावट आने की आशंका है। भारत और दुनिया भर के तमाम अर्थशास्त्रियों ने यह अनुमान लगाया है। लाखों भारतीय नौकरी गंवाने और काम ना मिलने की वजह से गरीबी के अंधेरे में डूबने वाले हैं।
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