ज्यादा पैसे वसूलने को गैरजरूरी और महंगे टेस्ट कराते हैं डॉक्टर

नयी दिल्ली। डॉक्टर को धरती का भगवान कहा जाता है, लेकिन आज यह सिर्फ कहने की बात रह गयी है और वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है। एक शोध बताता है कि भारत में आज के दौर में निजी अस्पतालों में काम करने वाले ज्यादातर डॉक्टरों पर मरीजों से ज्यादा पैसे वसूलने का दबाव होता है। इसके लिए ये डाॅक्टर विभिनन हथकंडे अपनाते हैं।

ये डॉक्टर मरीजों को गैरजरूरी, महंगे और खतरनाक टेस्ट कराने से गुरेज नहीं करते। ताकि अस्पताल और उन्हें मोटी रकम हासिल हो सके। भारत में चिकित्सा व्यवसाय पर यह दवा किया है ब्रिटेन के एक प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल द बीएमजे (ब्रिटिश मेडिकल जर्नल) ने।

हिमाचल प्रदेश में एक चैरिटेबल अस्पताल में 38 साल सेवाएं देने के बाद आस्ट्रेलिया के डॉ. डेविड बर्जर ने अपने अनुभवों को बीएमजे (ब्रिटिश मेडिकल जर्नल) के जून महीने के अंक में प्रकाशित किया है। डॉ. डेविड बर्जर के अनुसार यहां भ्रष्टाचार एमसबीबीएस स्तर से ही शुरू हो जाता है।

देश में कुल पंजीकृत मेडिकल कॉलेज में 60 प्रतिशत कॉलेज नेताओं के है। इन कॉलेजों को मान्यता देते समय एमसीआई खुद नियमों को नजरअंदाज कर देती है। हिमाचल प्रदेश में चैरिटेबल अस्पताल में सेवाएं देते डॉ. डेविड कई निजी व सरकारी अस्पतालों के संपर्क में आएं, जिसके अनुसार सामान्य बीमारियों की जांच के लिए मरीजों की 40 से 50 प्रतिशत जांचें बेवजह होती है। यहीं ने 20 प्रतिशत बड़ी सजर्री सिर्फ मरीजों की जेब ढीली करने के लिए की जाती है।

इस साप्ताहिक पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में कोलकाता में हदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गौतम मिस्त्री ने कहा- डॉक्टरों पर अस्पताल प्रबंधन का काफी दबाव होता है। उनसे बेवजह की सर्जरी कराने या फिर मरीजों की जांच का दबाव होता है। ऐसा नहीं करने पर उन्हें नौकरी गंवाने का डर रहता है।’

एमसीआई की प्रतिष्ठा दांव पर

पुणे के एक गैर सरकारी संगठन साथी ने पहली बार इस समस्या को बाकायदा उठाया है। इसकी हाल की रिपोर्ट में 78 डॉक्टरों समेत गाइनेकोलॉजिस्ट अरुण गरदारे के हवाले से कहा गया है कि भारत में मल्टी स्पेशिएलिटी हास्पिटलों की बाढ़ सी आ गई है।

इन अस्पतालों का मुख्य उद्देश्य हर हाल में जमकर पैसे कमाना है और अपने निवेशकों को फायदा पहुंचाना है। वहीं अमेरिका के ओहियो में एचआईवी कंसल्टेंट और प्रोफेसर कुणाल साहा कहते हैं, ‘बड़ी संख्या में मरीजों को सर्जरी की सलाह दी जाती है और कई जांचों के लिए बेवजह की जांच के लिए अस्पतालों में भर्ती कराया जाता है, ताकि मोटी कमाई हो सके।’

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) भारत में चिकित्सा सेवाओं पर लगाम लगाती है। वहीं, बीएमजे रिपोर्ट तैयार करने वाली बंगलूरू की पत्रकार मीरा के कहती हैं कि एमसीआई की प्रतिष्ठा दांव पर है। वह डॉक्टरों की लापरवाही पर लगाम लगा पाने में नाकाम साबित हो रही है। जरूरत है इसके ढांचे में आमूलचूल बदलाव लाने की। हालांकि एमसीआई ने इस रिपोर्ट में अभी तक चुप्पी साध रखी है।

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