यह मिशन कामयाब हुआ तो भारत अंतरिक्ष पर मानव मिशन भेजने वाला दुनिया का चौथा देश होगा। इस परियोजना में मदद के लिए भारत ने पहले ही रूस और फ्रांस के साथ करार किया है।
बेंगलुरु। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि गगनयान मिशन इसरो के लिए बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित होगा। इसके लिए तैयारियां चल रही हैं। यह मिशन कामयाब हुआ तो भारत अंतरिक्ष पर मानव मिशन भेजने वाला दुनिया का चौथा देश होगा। इस परियोजना में मदद के लिए भारत ने पहले ही रूस और फ्रांस के साथ करार किया है। पहला मानव सहित गगनयान के लिए दिसंबर 20121 के समय तय किया गया है। इसमें किसी आम नागरिक को भी अंतरिक्ष में जाने का मौका मिल सकता है। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने हाल ही में 10 हजार करोड़ की महत्वकांक्षी गगनयान परियोजना को मंजूरी दी थी।
सिवन ने कहा कि इसरो की सबसे बड़ी प्राथमिकता गगनयान है। पहली डेडलाइन अनमैंड मिशन के लिए दिसंबर 2020 तय की गई है। दूसरी डेडलाइन अनमैंड मिशन के लिए जुलाई 2021 तय की गई है। पहले मानवीय मिशन के लिए दिसंबर 2021 का समय तय किया गया है। इसरो प्रमुख ने बताया कि जीसैट-20 और जीसैट-29 सैटेलाइट इसी साल लॉन्च होंगे। इन सैटलाइट से हाई स्पीड कनेक्टिविटि को बल और डिजिटल इंडिया के सपने को पूरा करने में मदद मिलेगी।
गगनयान के लिए शुरुआती ट्रेनिंग भारत में ही होगी लेकिन एडवांस ट्रेनिंग के अंतरिक्ष यात्रियों को रूस जाना पड़ सकता है। गगनयान में जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के चयन पर इसरो प्रमुख सिवन ने कहा कि सभी क्रू मेंबर्स भारत से होंगे, भारतीय एयरफोर्स के जवान होंगे, सिविलियन भी हो सकते हैं। जो भी चयन के पैमाने पर खरा उतरेंगे वही जाएंगे। महिलाओं को भी अवसर है। चयन संबंधित फैसले सिलेक्शन कमेटी करेगी। देशभर में छह इंक्यूबेशन सेंटर बनाए जाएंगे, जो परियोजना के लिए प्रशिक्षण देंगे।
सिवन ने कहा कि इसरो का यह स्पेस अभियान तीन भारतीयों को 2022 में अंतरिक्ष में ले जाने का है। इसरो ने अपने रॉकेटों और उपग्रहों के अलावा मंगलयान और चंद्र मिशन से जो प्रतिष्ठा हासिल की है, उस सिलसिले में देखें तो गगनयान की जरूरत की आरंभिक वजह समझ में आ जाती है। 2022 में देश के प्रतिभावान नौजवान जब स्वदेशी अभियान की बदौलत अंतरिक्ष के भ्रमण पर होंगे तो यह उपलब्धि सिर्फ उन नौजवानों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं होगी, बल्कि इससे भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा जो अपने नागरिकों को स्वदेशी तकनीक के बल पर अंतरिक्ष में भेज सकता है। हालांकि यह स्वाभाविक ही है कि गननयान पर 10 हजार करोड़ रुपये के खर्च को देखते यह पूछा जाए कि क्या इसके बिना अंतरिक्ष में हमारी हैसियत को कोई बट्टा लगने वाला है या फिर स्पेस मार्केट का कोई दबाव है, जिसके लिए हमें यह साबित करने की जरूरत है कि भारत अपने दम पर इंसानों को स्पेस में भेज सकता है?
अभी तक दुनिया में सिर्फ तीन देशों ने ही अपने प्रयासों से अपने नागरिकों को अंतरिक्ष में भेजा है। इसमें पहली उपलब्धि सोवियत संघ (आज के रूस) के नाम है जिसने 1957 में दुनिया का पहला कृत्रिम उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ा था। इसकी सफलता से उत्साहित सोवियत संघ ने 12 अप्रैल, 1961 को अपने नागरिक यूरी एलेकसेविच गागरिन को वोस्टॉक-1 नामक यान से अंतरिक्ष में भेजा था। इसके बाद से रूस वोस्टॉक, वोस्खोड और सोयूज यानों से करीब 74 मानव मिशनों को अंतरिक्ष में भेज चुका है। अमेरिका ने 5 मई 1961 को अपने नागरिक एलन बी शेपर्ड को प्रोजेक्ट मरकरी मिशन के तहत स्पेसक्राफ्ट फ्रीडम-7 से अंतरिक्ष में भेजा था।किया। इसके बाद से अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा 200 से ज्यादा मानव मिशन अंतरिक्ष में भेज चुकी है। इस सूची में तीसरा देश चीन है। उसने 15 अक्टूबर 2003 को अपने नागरिक यांग लिवेई को शिंझोऊ-5 यान से अंतरिक्ष में भेजा था।
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