नयी दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून यानि CAB 2019 राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के बाद देश में लागू हो गया। दिल्ली से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों तक इस विधेयक के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। पूर्वोत्तर के असम में हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है। स्थिति नियंत्रण से बाहर है और बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी असम की सड़कों पर उतरे हुए हैं। विधायक का घर फूंक दिया गया और प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने को पुलिस द्वारा चलायी गयी गोली से दो लोगों की मौत हो गयी है। ऐसे में यह जानना बहुत जरूरी है कि ये नागरिकता संशोधन बिल आखिर है क्या? और इसको लेकर हिंसक विरोध प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं? आईये जानते हैं-
सन् 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे ’नागरिकता अधिनियम 1955’ के नाम से जाना जाता है। यह अधिनियम ही यह परिभाषित करता है कि भारत देश का नागरिक कौन है। मोदी सरकार ने इसी कानून में संशोधन किया है जिसे ’नागरिकता संशोधन बिल 2016’ नाम दिया गया है. पहले ’नागरिकता अधिनियम 1955’ के मुताबिक, वैध दस्तावेज होने पर ही लोगों को 11 साल के बाद भारत की नागरिकता मिल सकती थी।
इस कानून के लागू होने के बाद अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण 31 दिसंबर 2014 तक भारत आये गैर मुस्लिम शरणार्थी यानी हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी। मतलब 31 दिसंबर 2014 के पहले या इस तिथि तक भारत में प्रवेश करने वाले नागरिकता के लिए आवेदन करने के पात्र होंगे। नागरिकता पिछली तिथि से लागू होगी।
नागरिकता संशोधन बिल की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में लागू नहीं होगा (जो स्वायत्त आदिवासी बहुल क्षेत्रों से संबंधित है), जिनमें असम, मेघायल, त्रिपुरा और के क्षेत्र मिजोरम शामिल हैं। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम जैसे राज्यों में जहां इनर लाइन परमिट है, ये बिल इन राज्यों पर भी लागू नहीं होगा।
इनर लाइन परमिट ईस्टर्न फ्रंटियर विनियम 1873 के अंतर्गत जारी किया जाने वाला एक ट्रैवल डॉक्यूमेंट है। भारत में भारतीय नागरिकों के लिए बने इनर लाइन परमिट के इस नियम को ब्रिटिश सरकार ने बनाया था। बाद में देश की स्वतंत्रता के बाद समय-समय पर फेरबदल कर इसे जारी रखा गया।
इस कानून में छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी, लेकिन इसमें मुसलमानों की बात नहीं कही गई है। विरोधियों का कहना है कि यह भारत के मूलभूत संवैधानिक सिद्धांत के विरुद्ध है और यह विधेयक मुसलमानों के ख़लिफ़ है. ये भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 जो कि एक मौलिक अधिकार है उसका (समानता का अधिकार) उल्लंघन करता है। सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि इस बिल में मुस्लिम धर्म के साथ भेदभाव किया जा रहा है।
पूर्वोत्तर राज्यों के मूल निवासियों का मानना है कि इस बिल के आते ही वे अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक बन जाएंगे और इस बिल से उनकी पहचान और आजीविका को खतरा है। प्रदर्शनकारियों ने सवाल उठाया, ‘’जब अरूणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड को नागरिक संशोधन बिल से बाहर रखा जा सकता है तो हमारे साथ दोहरा व्यवहार क्यों किया जा रहा है?’’
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