नई दिल्ली। उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता के पिता की हत्या के मामले में दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने उत्तर प्रदेश के पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को 10 साल कैद की सजा सुनाई है। अदालत ने इस मामले में सेंगर और उनके भाई अतुल सेंगर को पीड़िता के परिवार को 10-10 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश भी दिया है। अदालत ने कहा कि जिस तरीके से पीड़िता के पिता की हत्या की गई थी, वह जघन्य था।
सजा सुनाने के दौरान जिला न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने कहा कि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि कानून का उल्लंघन किया गया है। कुलदीप सेंगर एक सार्वजनिक पदाधिकारी थे और उन्हें कानून का पालन करना चाहिए था। जिस तरह अपराध किया गया है, उदारता का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है। अदालत ने कुलदीप सेंगर और उसके भाई अतुल सेंगर को पीड़िता को उसके पिता की हत्या करने के हर्जाने के तौर पर 10 लाख रुपये देने के लिए कहा। न्यायाधीश ने कहा, “इनमें चार नाबालिग बच्चे हैं जिसमें तीन बच्चियां और एक लड़का है। उन्हें उनके पैतृक स्थान से भी बेदखल कर दिया गया है।”
गौरतलब है कि पीड़िता के पिता की पुलिस हिरासत के दौरान नौ अप्रैल 2018 को हत्या हो गई थी। अदालत में सजा पर जिरह के दौरान सेंगर ने कहा था कि अगर उन्होंने कुछ गलत किया है तो उन्हें फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए और उनकी आंखों में तेजाब डाल दिया जाना चाहिए।
अदालत ने कुलदीप सेंगर को आपराधिक साजिश का दोषी पाया था। फैसला सुनाते हुए जज ने कहा, “यह मेरी जिंदगी का सबसे चुनौतीपूर्ण ट्रायल रहा।” जज ने सीबीआई और पीड़ित के वकील की भी सराहना की। तीस हजारी कोर्ट ने इससे पहले 29 फरवरी को इस मामले पर सुनवाई की थी और फैसले के लिए चार मार्च की तिथि तय की थी।
कुलदीप सेंगर ने अदालत में कहा कि उसकी
दो बेटियां हैं। उसने न्यायाधीश से आग्रह किया कि उसे छोड़ दिया जाए। इस पर न्यायाधीश
ने कहा, “आपका परिवार है। हर किसी का है। आपको
यह सब अपराध करते समय सोचना चाहिए था लेकिन आपने सभी कानूनों को तोड़ा। अब
आप हर चीज को ना कहेंगे? आप कब तक इनकार करते रहेंगे?”
सीबीआई ने इस मामले में कुलदीप सेंगर एवं अन्य के लिए अधिकतम सजा की मांग की जिसमें मामले में दोषी करार दिए गए दो पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। इसमें माखी थाने के तत्कालीन प्रभारी अशोक सिंह भदौरिया और तत्कालीन उपनिरीक्षक केपी सिंह शामिल हैं। सीबीआई के वकील ने कहा कि नौकरशाह होने के नाते इन दो पुलिस अधिकारियों का कर्तव्य था कि कानून-व्यवस्था बनाए रखें लेकिन उन्होंने अपनी ड्यूटी नहीं की और पीड़िता के पिता का समय पर इलाज नहीं कराया। सीबीआई के वकील ने अदालत से कहा कि ये पुलिस अधिकारी षड्यंत्र में शामिल थे और उन्हें कड़ा दंड मिलना चाहिए।
इस मामले में कुलदीप सिंह सेंगर, कामता प्रसाद (सब इंस्पेक्टर), अशोक सिंह भदौरिया (एसएचओ), विनीत मिश्रा उर्फ विनय मिश्रा, बीरेंद्र सिंह उर्फ बउवा सिंह, शशि प्रताप सिंह उर्फ सुमन सिंह और जयदीप सिंह उर्फ अतुल सिंह को अदालत ने दोषी करार दिया गया। शैलेंद्र सिंह उर्फ टिंकू सिंह, राम शरण सिंह उर्फ सोनू सिंह, अमीर खान, कॉन्स्टेबल और शरदवीर सिंह कोर्ट से बरी हो गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस मामले को उत्तर प्रदेश के बाहर शिफ्ट कर दिया गया था। इसके बाद से तीस हजारी कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही थी। इस केस में पीड़िता के पक्ष से कुल 55 लोगों ने गवाही दी जबकि बचाव पक्ष की तरफ से नौ गवाह कोर्ट में पेश हुए।
भाजपा के तत्कालीन विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को नाबालिग से दुष्कर्म करने के मामले में उम्रकैद की सजा हो चुकी है। 16 दिसंबर, 2019 को तीस हजारी कोर्ट ने इस मामले में उसको दोषी ठहराया था और 20 दिसंबर को उम्रकैद की सजा सुनाई।
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