दवे के भतीजे निखिल दवे ने ‘वह (अनिल माधव दवे) हमसे कहते थे कि उनकी मृत्यु के बाद उनका कोई स्मारक न बनाया जाये। अगर कोई व्यक्ति उनकी स्मृति को चिरस्थायी रखना चाहता है, तो वह पौधे लगाकर इन्हें सींचते हुए पेड़ में तब्दील करे और नदी-तालाबों को संरक्षित करे.’उन्होंने बताया कि दवे की अंतिम इच्छा के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में नर्मदा और तवा नदी के संगमस्थल बांद्राभान में किया जायेगा।
इस स्थान पर वह अपने अलाभकारी संगठन ‘नर्मदा समग्र’ के बैनर तले ‘अंतरराष्ट्रीय नदी महोत्सव’ आयोजित करते थे। उन्हें इस जगह से खासा लगाव था। इस बीच, सोशल मीडिया पर एक दस्तावेज की प्रति वायरल हो रही है जिसे दवे की कथित आखिरी इच्छा और वसीयत से जुड़ा बताया जा रहा है।इस दस्तावेज पर 23 जुलाई 2012 का दिनांक अंकित है। इस दस्तावेज पर उनका अंतिम संस्कार बांद्राभान में वैदिक रीति से किये जाने, उनकी अंत्येष्टि में किसी तरह का आडम्बर न किये जाने, उनका स्मारक न बनाये जाने, उनकी याद में कोई प्रतियोगिता और पुरस्कार न शुरू किये जाने सरीखी बातों का जिक्र है। दवे के भतीजे निखिल ने कहा कि वह इस दस्तावेज की प्रामाणिकता की पुष्टि तुरंत नहीं कर सकते लेकिन इस दस्तावेज में कही गयी अधिकतर बातें दिवंगत केंद्रीय मंत्री की पर्यावरणहितैषी सोच और सादगी से भरी रही उनकी जीवन यात्रा से मेल खाती हैं।
अंतिम संस्कार बांद्राभान में नदी महोत्सव वाले स्थान पर हो।
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे ने मृत्यु से पांच साल पहले ही अपनी वसीयत में अपना अंतिम संस्कार होशंगाबाद ज़िले के बान्द्राभान में नर्मदा नदी के तट पर करने तथा उनकी स्मृति में वृक्षारोपण एवं जल संरक्षण किये जाने की इच्छा व्यक्त की थी।उन्होंने लिखा था कि संभव हो तो उनका अंतिम संस्कार बांद्राभान में नदी महोत्सव वाले स्थान पर किया जाये। उन्होंने यह भी लिखा कि उनका अंतिम संस्कार केवल वैदिक रीति से किया जाये तथा कोई भी आडम्बर या दिखावा नहीं हो।
उन्होंने लिखा कि संभव हो तो मेरा अंतिम संस्कार बाद्राभान में नदी महोत्सव वाले स्थान पर किया जाये।
उन्होंने लिखा कि उत्तर किया के रूप में केवल वैदिक कर्म ही हो, किसी भी प्रकार का दिखावा, आडंबर ना हो।
उन्होंने लिखा कि मेरी स्मृति में कोई भी स्मारक, प्रतियोगिता, पुरस्कार, प्रतिमा ना बनाई जाए।
उन्होंने लिखा कि जो मेरी स्मृति में कुछ करना चाहते हैं वे कृप्या वृक्षों को बोनें व उन्हें संरक्षित कर बड़ा करने का कार्य करें, तो उन्हें खुशी होगी। ऐसा करते हुए भी मेरे नाम का इस्तेमाल ना करें।
आज सुबह हुआ निधन
पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे का आज (गुरुवार) सुबह दिल्ली के एम्स में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। दवे की मौत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर दुख जताया है।अनिल माधव दवे 61 साल के थे।पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ‘मेरे दोस्त और एक बहुत ही सम्मानित सहयोगी पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे के अचानक निधन से बिल्कुल चौंक गया हूं।’
मध्य प्रदेश के उज्जैन जिला स्थित बड़नगर में हुआ था जन्म
अनिल माधव दवे का जन्म 6 जुलाई 1956 को मध्य प्रदेश के उज्जैन जिला स्थित बड़नगर में हुआ था।उनकी प्राथमिक शिक्षा गुजरात में संपन्न हुई।इसके बाद इंदौर से उन्होंने रूरल डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट के साथ कॉमर्स में मास्टर्स किया। वह कॉलेज के दिनों में छात्र नेता रहे।पीएम मोदी ने अपनी टीम में जिन्हें जगह दी, उनमें अनिल माधव दवे भी शामिल थे। दवे ने ‘नर्मदा समग्र’ नामक आर्गेनाइजेशन की शुरुआत की थी. दवे वर्ष 2004 में नर्मदा की पहली हवाई परिक्रमा भी कर चुके हैं।
केंद्र में उन्होंने 5 जुलाई 2016 को केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार संभाला था। दिल्ली के एम्स में गुरुवार को दिल का दौरा पड़ने से दवे का निधन हो गया।बताया जा रहा है कि अनिल दवे पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे।
मध्यप्रदेश से दो बार राज्यसभा सांसद रहे
मध्यप्रदेश से दो बार राज्यसभा सांसद रहे दवे को भाजपा में त्रुटिहीन सांगठनिक कौशल वाले व्यक्ति के तौर पर जाना जाता था। वह लंबे समय तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे। वह वर्ष 2003 में तब सुखिर्यों में आए जब उनकी रणनीति उस समय के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की हार का सबब बनी. इसके बाद मुख्यमंत्री बनी उमा भारती ने दवे को अपना सलाहकार बनाया।
एनसीसी एयर विंग कैडेट के तौर पर उन्होंने उड़ान संबंधी शुरूआती प्रशिक्षण लिया
एनसीसी एयर विंग कैडेट के तौर पर उन्होंने उड़ान संबंधी शुरूआती प्रशिक्षण लिया और इसमें जीवनभर का जुनून तलाश लिया।वह निजी पायलट लाइसेंस धारक थे और एक बार उन्होंने नर्मदा के तट के आसपास 18 घंटे तक सेसना विमान उड़ाया था। राज्यसभा सांसद के तौर पर वह ‘ग्लोबल वार्मिंग एंड क्लाइमेट चेंज’ के मुद्दे पर बने संसदीय मंच के सदस्य रहे।
साहित्य में गहरी रूचि थी
इंदौर के गुजराती कॉलेज से कॉमर्स में परास्नातक करने वाले दवे की साहित्य में गहरी रूचि थी और उन्होंने कई किताबें भी लिखीं।
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