लखनऊ। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में प्रदर्शन और इस दौरान हुई हिंसा के लिए इस्लामिक चरमपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) द्वारा फंडिंग किए जाने की बात सामने आने के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने नए सिरे से जांच शुरू कर दी है। प्रदेश में पीएफआई के सक्रिय सदस्यों और उनसे जुड़े लोगों को चिह्नित किया जा रहा है।
गौरतलब है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएफआई ने उत्तर प्रदेश समेत कई राज्य़ों में सीएए के खिलाफ प्रदर्शन-हिंसा से ठीक पहले और हिंसा के दौरान पश्चिम उत्तर प्रदेश समेत कई स्थानों के बैंक खातों में 120 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए। जांच एजेंसियों को शक है कि कि इस रकम का इस्तेमाल सीएए के खिलाफ धरना-प्रदर्शन और हिंसा फैलाने में किया गया।
लखनऊ में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के प्रदेश अध्यक्ष वसीम अहमद समेत तीन सक्रिय सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद साफ हो गया था कि सीएए के विरोध में हिंसा के पीछे गहरा षड्यंत्र था। इन हिंसक प्रदर्शनों के मामले में पुलिस ने प्रदेश में पीएफआइ के 25 सक्रिय सदस्यों की गिरफ्तारी की थी। डीजीपी ओपी सिंह ने पीएफआइ के सहयोगी संगठनों की छानबीन के भी निर्देश दिए थे। हालांकि उस समय पुलिस वसीम अहमद के खिलाफ ज्यादा ठोस सबूत नहीं जुटा पाई और वह जमानत पर बाहर आ गया।
पुलिस के अनुसार इस्लामिक चरमपंथी संगठन सिमी पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद उससे जुड़े लोगों ने ही पीएफआई का गठन किया है। पीएफआई कुछ अन्य संगठनों की मदद से करीब एक साल से उत्तर प्रदेश में हिंसा भड़काने की फिराक में था। पीएफआइ ने महिला और छात्र फ्रंट भी बनाए हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर शामली, मुरादाबाद के अलावा लखनऊ, कानपुर, वाराणसी और अलीगढ़ में भी पीएफआई काफी सक्रिय रहा है। उत्तर प्रदेश में सीएए के विरोध में हुई हिंसा की घटनाओं से पहले भी पीएफआई के सदस्यों के खिलाफ करीब एक दर्जन मुकदमे दर्ज थे। पीएफआई के जलसों और जुलूसों में जिस तरह के भड़काऊ भाषण देने के साथ ही नारेबाजी की जाती रही है उसके चलते उसके कई सदस्य काफी समय से जांच एजेंसियों के सथ ही उत्तर प्रदेश एटीएस के निशाने पर हैं।