हल्द्वानी । रिक्शा चलाकर जीवन यापन करने के बावजूद लावारिस लाशों के मसीहा हनुमान स्वयं इस दुनिया को अलविदा कह गये। बता दें कि हनुमान ने 300 लावारिस लाशों को नैनी झील से निकाला। इनमें 50 से ज्यादा का अंतिम संस्कार अपने जीवन काल में बिना किसी की सहायता के किया था। वह 72 साल के थे।
नैनीताल की प्रसिद्ध नैनी झील में डूबकर मरने वाले 300 से अधिक लोगों की लाशें निकालने वाले हनुमान प्रसाद का शनिवार को निधन हो गया। 72 साल के रिक्शा चालक हनुमान अक्सर नैनी झील में डूबने वालों की लाशें निकालने में पुलिस की मदद करते थे। करीब 50 से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार उन्होंने स्वयं करवाया था। हनुमान ने इस काम के बदले कभी किसी से आर्थिक सहायता नहीं ली।
नैनीताल निवासी हनुमान प्रसाद बीते कई दिनों से बीमार थे। उन्हें नैनीताल के बीडी पांडे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तबियत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां शनिवार सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया। हनुमान प्रसाद ने शादी नहीं की थी और न ही उनका कोई परिवार था। शनिवार दोपहर नैनीताल के व्यापारियों व विभिन्न संगठन से जुड़े लोगों ने हनुमान प्रसाद का अंतिम संस्कार किया।
कुशल तैराक भी थे हनुमान
1930 में हल्द्वानी मार्ग पर मिठठन लाल की जूतासाज की दुकान हुआ करती थी। हनुमान उनके मंझले पुत्र थे। पिता का कारोबार बंद होने के बाद हनुमान आगे पढ़ाई नहीं कर पाए। नैनीताल में तैराकी करते करते 14 साल की उम्र में ही हनुमान काफी अच्छे तैराक बन गए थे। वह अपना गुजर बसर रिक्शा चलाकर व चने बेचकर किया करते थे।
आपातकाल में बरेली जेल में रहे थे हनुमान
देश में आपातकाल खत्म होने के बाद जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जेल हुई। तो इस पर नैनीताल के मौजूदा पालिकाध्यक्ष स्व. बालकिशन सनवाल भी विरोध में 19 दिन बरेली जेल में रहे। इस दौरान उनके साथ हनुमान प्रसाद ने भी 19 दिन बरेली सेंट्रल जेल में बिताये थे। यथा नाम तथा गुण की बात कहते हुए नैनीताल के लोग हनुमान प्रसाद के सेवाभाव के कायल हैं। उनका कहना है कि हनुमान प्रसाद वास्तव में मानवता के सच्चे सेवक थे।