वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट को लेकर कहा कि आज पांच ट्रिलियन डॉलर शब्द चारों तरफ गूंज रहा है। हमारे देश में कुछ लोग ऐसे हैं जो ऐसी चर्चा करने में लगे हैं कि इतना बड़ी लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। प्रधानमंत्री ने ऐसे लोगों को “पेशेवर निराशावादी” बताते हुए कहा कि ये लोग समाधान को भी समस्या बना देते हैं जबकि भारत के लोग ऐसे लोग हैं जो समस्याओं के पहाड़ पर भी हौसलों की मीनार बनाते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थो। इससे पहले उन्होंने पौधरोपण के बाद भाजपा के राष्ट्रव्यापी सदस्यता अभियान का आगाज किया। उन्होंने टोल फ्री नम्बर से शुरू इस सदस्यता अभियान के दौरान पांच सदस्यों को प्रमाण पत्र भी प्रदान किया।
मोदी ने कहा कि आखिर फाइव ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के लक्ष्य का मतलब क्या है और एक आम भारतीय की जिंदगी का इससे क्या लेना-देना है, यह आपके लिए, सबके लिए जानना बहुत जरूरी है। अंग्रेजी में एक कहावत है, “साइज ऑफ केक मैटर्स” यानि “जितना बड़ा केक होगा उसका उतना ही बड़ा हिस्सा लोगों को मिलेगा।” इसी कारण हमने भारत की अर्थव्यवस्था को फाइव ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनाने पर जोर दिया है। इसमें बात होगी हौसले की, नई संभावनाओं की, विकास के यज्ञ की, मां भारती की सेवा की और न्यू इंडिया के सपने की।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सपने बहुत हद तक फाइव ट्रिलियन इकॉनमी के लक्ष्य से जुड़े हुए हैं। आज जितने भी विकसित देश हैं, उनमें ज्यादातर के इतिहास को देखें तो एक समय में वहां भी प्रति व्यक्ति आय बहुत ज्यादा नहीं होती थी लेकिन इन देशों के इतिहास में एक दौर ऐसा आया जब कुछ ही समय में प्रति व्यक्ति आय ने जबरदस्त छलांग लगाई। यही वो समय था जब ये देश विकासशील से विकसित यानि डेवेलपिंग से डेवलप्ड की श्रेणी में आ गए। जब किसी भी देश में प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है तो वह खरीद की क्षमता बढ़ाती है। खरीद की क्षमता बढ़ती है तो मांग बढ़ती है डिमांड बढ़ती है तो सामान का उत्पादन बढ़ता है, सेवा का विस्तार होता है और इसी क्रम में रोजगार के नए अवसर बनते हैं। यही प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, उस परिवार की बचत या सेविंग को भी बढ़ाती है।
मोदी ने कहा, “मुझे पूरा विश्वास है कि एक राष्ट्र के तौर पर हमारे सामूहिक प्रयास 5 वर्ष में 5 ट्रिलियन डॉलर के आर्थिक पड़ाव तक हमें जरूर पहुंचाएंगे। लेकिन साथियों, कुछ लोग कहते हैं कि इसकी क्या जरूरत है। ये सब क्यों किया जा रहा है? ये वो वर्ग है जिनसे हम “Professional Pessimists”भी कह सकते हैं। ये “पेशेवर निराशावादी” सामान्य लोगों से बिलकुल अलग होते है। मैं आपको बताता हूं, कैसे? आप किसी सामान्य व्यक्ति के पास समस्या लेकर जाएंगे तो वह आपको समाधान देगा पर इन पेशेवर निराशावादियों के पास आप समाधान लेकर जाएंगे तो वे उसे समस्या में बदल देंगे।”
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आने वाले 5 वर्ष में 5 ट्रिलियन डॉलर की विकास यात्रा में अहम हिस्सेदारी किसान और खेती की होगी। आज देश खाने-पीने के मामले में आत्मनिर्भर है तो इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ देश के किसानों का पसीना है, सतत परिश्रम है। अब हम किसान को पोषक से आगे निर्यातक के रूप में देख रहे हैं। अन्न हो, दूध हो, फल-सब्जी, शहद या फिर ऑर्गेनिक उत्पाद, हमारे पास निर्यात की भरपूर क्षमता है। इसीलिए बजट में कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए माहौल बनाने पर बल दिया गया है।
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