खटीमा। भाषाई अस्मिता के लिए संघर्षरत अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के राष्ट्रीय सचिव रवीन्द्र सिंह धामी ने कहा कि हिंदी भाषा को लेकर लड़ी गई लड़ाई के फलस्वरूप आज शिक्षा नीति में बदलाव देखना अत्यंत सुखद है। देर से ही सही नरेन्द्र मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति में जो प्रावधान किए हैं वे स्वागत योग्य हैं। उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) समेत सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में भी अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कर राष्ट्र भाषा हिंदी समेत भारतीय भाषाओं को लागू करने की भी मांग की है।
धामी ने कहा कि भाषा आंदोलन में शामिल उनकी मांगों में मैकाले की शिक्षा व्यवस्था को बदलकर मातृभाषा में शिक्षा देने की मांग भी थी जो आज मोदी सरकार ने पूरी की है। इससे पहले मैकाले की शिक्षा नीति को बदलने की कोई भी सरकार हिम्मत नहीं जुटा पायी थी। मैकाले की शिक्षा नीति भारतीय संस्कृति और परंपराओं को धीरे-धीरे खत्म कर रही थी क्योंकि ये शिक्षा नीति बनाई ही इसलिए गई थी कि भारतीय अंग्रेजों के मानसिक गुलाम बना जाएं।
भाषा आंदोलनकारी ने कहा कि कहा कि बच्चों का बौद्धिक और मानसिक विकास मातृभाषा में ही बेहतर हो सकता है। अब मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा होने से इसके सार्थक नतीजे बहुत जल्द सामने आएंगे। साथ ही भारतीय संस्कृति की वाहक भारतीय भाषाओं को बढ़ावा मिलेगा। गांधीजी ने भी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा की जरूरत बताई थी।
90 के दशक में हुए भाषा आंदोलन के बाबत रवीन्द्र धामी ने कहा कि अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के बैनर तले 12 मई 1994 को मातृभाषा के लिए दिल्ली में संघ लोक सेवा आयोग कार्यालय के समक्ष ऐतिहासिक धरना दिया गया था। इस धरने में ज्ञानी जैल सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, अटल विहारी वाजयेपी, देवीलाल समेत कई राजनेता, संपादक और साहित्यकार शामिल हुए थे। आंदोलन के दौरान आंदोलनकारी कई बार गिरफ्तार हुए और तिहाड़ जेल में बंद रहे लेकिन कदम पीछे नहीं खींचे। नतीजतन अंग्रेजीयत की हार हुई और भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने का प्रावधान नई शिक्षा नीति में शामिल किया गया।
धामी ने कहा कि 90 के दशक में अंग्रेजीयत के खिलाफ ऐतिहासिक आंदोलन में शामिल रही शक्तियों के आगे आने के बाद ही मातृभाषा को लेकर मंथन तेज हुआ। उन्होंने मांग की कि यूपीएससी समेत सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में भी हिंदी समेत भारतीय भाषाएं लागू की जाएं। उन्होंने मोदी सरकार और भाषा आंदोलन के समर्थकों से आग्रह किया कि यूपीएससी समेत सभी परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त करने की पहल करें। आम आदमी की सोच की तरह अगर आम आदमी के लिए नीतियां बनेंगी तो भारत पुनः विश्व गुरु बनेगा।
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद यूपीएससी समेत सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में भी अंग्रेजीयत का वर्चस्व खत्म करने का मामला सरकार के समक्ष मामला उठाया जाएगा।
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