नई दिल्ली। महाराष्ट्र के सतारा जिले की महाबलेश्वर स्थित गुफाओं में निपाह वायरस होने की पुष्टि हुई है। वर्ष 2020 में पुणे की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने महाबलेश्वर की गुफाओं से चमगादड़ों की लार के नमूने लिये थे। इनकी जांच के दौरान ही निपाह वायरस मिलने की पुष्टि हुई है। ऐसा पहली बार हुआ है कि महाराष्ट्र में इस वायरस की पुष्टि चमगादड़ों में हुई है। इस पुष्टि के बाद महाबलेश्वर-पंचगनी के पर्यटन स्थलों को फिलहाल बंद कर दिया गया है। महाबलेश्वर को भारत में मिनी कश्मीर भी कहा जाता है। हर वर्ष यहां हजारों सैलानी आते हैं।
निपाह कोई नया वायरस नहीं है। पूर्व में इसके संक्रमण को रोका जा चुका है। वर्ष 2018 में निपाह वायरस की वजह से केरल में 17 लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि, इस वायरस से संक्रमित करीब 75 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है इसलिए ही इसको एक डेडली वायरस कहा जाता है। मौजूदा समय में भी इसकी कोई दवा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन जानकारों की राय में बचाव ही इसका एक उपाय है। ये वायरस मुख्यत: चमगादड़ से फैलता है। गौरतलब है कि जो चमगादड़ फल खाते हैं उनकी लार फलों पर ही रह जाती है। ऐसे में जब कोई भी अन्य जानवर या व्यक्ति इन फलों को खाता है तो वह इससे संक्रमित हो जाता है।
मलेशिया में मिला था निपाह वायरस का पहला मामला
विश्व में इस वायरस का सबसे पहला मामला मलेशिया के कम्पंग सुंगाई गांव में सामने आया था। इस वजह से इस गांव के नाम के आगे ही निपाह जुड़ गया था। ये वायरस दिमाग को सबसे अधिक नुकसान पहुंचता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि यह सूअर के जरिए इंसानों में फैला था। इसके बाद सिंगापुर में इसका पहला मामला सामने आया था। निपाह वायरस डब्ल्यूएचओ के शीर्ष 10 वायरस में शामिल है। भारत में वर्ष 2001 और वर्ष 2004 में बांग्लादेश में भी इसके मामले सामने आए थे।
ये रहे लक्षण और बचाव के उपाय
वर्ष 1998 में मलेशिया में इसकी वजह से 100 से अधिक लोगों की जान गई थी। निपाह वायरस संक्रमण के लक्षणों में तेज बुखार आना, उल्टी और बेहोशी छाना, सांस लेने में तकलीफ शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके बचाव को लेकर जो उपाय सुझाए गए हैं उनमें साफ सफाई पर विशेष ध्यान देना, खाने से पहले और बाद में हाथों को धोना, खाने-पीने की दूषित चीजों से दूरी बनाकर रखना, पेड़ से गिरे फलों को न खाना शामिल है।
निपाह वायरस का इंक्यूबेशन पीरियड या संक्रामक समय अन्य वायरस के मुकाबले कहीं अधिक लंबा होता है। यह करीब 45 दिन का होता है। इसका एक अर्थ ये भी है कि किसी भी व्यक्ति या जानवर में इतने दिनों तक इसका संक्रमण आगे फैलाने की क्षमता होती है। जानकारों की राय में इसके लक्षण इन्सेफेलाइटिस जैसे भी होते हैं। इसमें दिमाग में सूजन आ जाती है और रोगी की मौत हो जाती है। 2020 में सामने आई एक रिपोर्ट बताती है कि जमीन का इस्तेमाल लगातार बदल रहा है। जंगलों के खत्म होने से चमगादड़ इंसानों के बेहद करीब आ गए हैं। इस वजह से इसका खतरा भी बढ़ गया है। यह रिपोर्ट यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर रिव्यू में प्रकाशित हुई थी।