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18 जुलाई 1980 में टेलीविजन ने रंगीन दुनिया की ओर बढ़ाया अपना पहला कदम

18 जुलाई 1980 में मद्रास से टेलीविजन से पहला रंगीन प्रसारण किया गया। अपनी ब्लैक एंड व्हाइट छवि को पीछे छोड़ते हुए 18 जुलाई आज ही के दिन मद्रास से टेलीविजन ने रंगीन दुनिया की ओर अपना पहला कदम बढ़ाया था।

दूरदर्शन युग

भारत में पहली बार आज ही के दिन 1980 में दूरदर्शन टेलीविजन से पहला रंगीन प्रसारण किया गया था। सरकार द्वारा नवंबर 1982 में देश ने एशियाई खेलों की मेजबानी के लिए यह प्रसारण शुरू किया था। जिसे मद्रास से संचालित किया गया।
महज कुछ ही कार्यक्रमों के साथ शुरू होने वाले दूरदर्शन ने 25 अप्रैल, 1982 को पहली बार रंगीन प्रसारण के लिए परीक्षण शुरू किया था,1980 के दशक को दूरदर्शन युग कहा जाता है और इस दौरान ‘बुनियाद’, ‘रामायण’, ‘महाभारत’, ‘शक्तिमान’, ‘रंगोली’ और ‘चित्रहार’ समेत कई कार्यक्रम प्रसारित हुए थे।
दूरदर्शन का जब रंगीन प्रसारण शुरू हुआ तो इसके 6 महीने के भीतर ही टीवी की डिमांग इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि उस समय सरकार को 50 हजार टीवी सेट विदेशों से आयात करने पड़े थे। बताया जाता है कि उस दौरान रंगीन टीवी को लेकर लोगों के बीच इतना ज्यादा क्रेज था कि वे 8000 कीमत वाली टीवी के लिए 15000 रुपए तक देने को तैयार थे।

आपको जानकर यह हैरानी होगी कि 1975 तक मात्र 7 शहरों में सिमटा दूरदर्शन आज 2 राष्ट्रीय और 11 क्षेत्रीय चैनलों के साथ कुल 21 चैनलों का प्रसारण करता है और इनका प्रसारण देश-विदेशों में होता है। 1416 जमीनी ट्रांसमीटर और 66 स्टूडियो के साथ यह देश का सबसे बड़ा प्रसारणकर्ता है। ‘कृषि दर्शन’ देश में सबसे लंबा चलने वाला दूरदर्शन का कार्यक्रम है।

दूरदर्शन का सफर :

भारत में सरकारी प्रसारक दूरदर्शन अपने 58 साल पूरे कर चुका है। 15 सितंबर 1959 को दूरदर्शन की शुरुआत हुई थी। शुरू में कई वर्षों तक दूरदर्शन भारत में शिक्षा, सूचना और मनोरंजन का प्रमुख स्रोत रहा। 1959 में जब सरकारी चैनल दूरदर्शन का प्रसारण शुरू हुआ तो वह किसी अजूबे से कम नहीं था तभी यह लोगों के बीच ‘बुद्धू बक्से’ के नाम से जाना जाने लगा। लेकिन उस बुद्धू बक्से का सफर आज 2018 में घर घर तक पहुंच गया। दूरदर्शन का पहला प्रसारण 15 सितंबर, 1959 को परीक्षण के तौर पर आधे घंटे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रमों के रूप में शुरू किया गया। उस समय दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में सिर्फ तीन दिन आधा-आधा घंटे होता था, तब इसको ‘टेलिविजन इंडिया’ नाम दिया गया था। बाद में 1975 में इसका हिंदी नामकरण ‘दूरदर्शन’ नाम से किया गया। यह दूरदर्शन नाम इतना लोकप्रिय हुआ कि टीवी का हिंदी पर्याय बन गया।

शुरुआती दिनों में दिल्ली भर में 18 टेलिविजन सेट लगे थे और एक बड़ा ट्रांसमीटर लगा था, तब दिल्ली में लोग इसको आश्चर्य के साथ देखते थे। इसके बाद दूरदर्शन ने धीरे-धीरे अपने पैर पसारे और दिल्ली (1965), मुंबई (1972), कोलकाता (1975), चेन्नई (1975) में इसके प्रसारण की शुरुआत हुई। शुरुआत में तो दूरदर्शन दिल्ली और आस-पास के कुछ क्षेत्रों में ही देखा जाता था। दूरदर्शन को देश भर के शहरों में पहुंचाने की शुरुआत 80 के दशक में हुई। दरअसल इसकी वजह 1982 में दिल्ली में आयोजित होने वाले एशियाई खेल थे। एशियाई खेलों के दिल्ली में होने का एक लाभ यह भी मिला कि ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ दिखने वाला दूरदर्शन रंगीन हो गया था। फिर दूरदर्शन पर शुरू हुआ पारिवारिक कार्यक्रम ‘हम लोग’ जिसने लोकप्रियता के तमाम रिकॉर्ड तोड़ दिए।

1984 में देश के गांव-गांव में दूरदर्शन पहुंचाने के लिए देश में लगभग हर दिन एक ट्रांसमीटर लगाया गया। इसके बाद आया भारत और पाकिस्तान के विभाजन की कहानी पर बना ‘बुनियाद’ कार्यक्रम, जिसने विभाजन की त्रासदी को उस दौर की पीढ़ी से परिचित कराया। इस धारावाहिक के सभी किरदार आलोक नाथ (मास्टर जी), अनीता कंवर (लाजो जी), विनोद नागपाल, दिव्या सेठ घर-घर में लोकप्रिय हो चुके थे। फिर तो एक के बाद एक बेहतरीन और शानदार धारवाहिकों ने दूरदर्शन को घर-घर में पहचान दे दी। दूरदर्शन पर 1980 के दशक में प्रसारित होने वाले ‘मालगुडी डेज़’, ‘ये जो है जिंदगी’, ‘रजनी’, ‘ही मैन’, ‘वाहः जनाब’, ‘तमस’, बुधवार और शुक्रवार को 8 बजे दिखाया जाने वाला फिल्मी गानों पर आधारित ‘चित्रहार’, ‘भारत एक खोज’, ‘व्योमकेश बक्शी’, ‘विक्रम बेताल’, ‘टर्निंग प्वॉइंट’, ‘अलिफ लैला’, ‘फौजी’, ‘रामायण’, ‘महाभारत’, ‘देख भाई देख’ ने देश भर में अपना एक खास दर्शक वर्ग ही नहीं तैयार कर लिया था बल्कि गैर हिंदी भाषी राज्यों में भी इन धारवाहिकों को जबर्दस्त लोकप्रियता मिली।

‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे धार्मिक कार्यक्रमों ने तो सफलता के तमाम कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए थे, 1986 में शुरू हुए रामायण और इसके बाद शुरू हुए महाभारत के प्रसारण के दौरान रविवार को सुबह देश भर की सड़कों पर कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसर जाता था और लोग अपने महत्वपूर्ण कार्यक्रमों से लेकर अपनी यात्रा तक इस समय पर नहीं करते थे। वहीं अगर विज्ञापनों की बात करें तो ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ जहां लोगों को एकता का संदेश देने में कामयाब रहा वहीं ‘बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर- हमारा बजाज’ से अपनी व्यावसायिक क्षमता का लोहा भी मनवाया।

ग्रामीण भारत के विकास में भी दूरदर्शन के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। सन 1966 में ‘कृषि दर्शन’ कार्यक्रम के द्वारा दूरदर्शन देश में हरित क्रांति लाने का सूत्रधार बना। सही मायने में अर्थपूर्ण कार्यक्रमों और भारतीय संस्कृति को बचाए रखते हुए देश की भावना

vandna

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