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‘मेरे घर आना जिंदगी’ पर ऑनलाइन चर्चा : अँधेरे से लड़ने के लिए दीया है पुस्तक

BareillyLive. साहित्य डेस्क। संतोष श्रीवास्तव की आत्मकथा “मेरे घर आना ज़िंदगी“ पर शनिवार 18 फरवरी को जनसरोकार मंच टोंक के यू-ट्यूब स्ट्रीम यार्ड पर चर्चा करते हुए अध्यक्ष वरिष्ठ कथाकार,अनुवादक सुभाष नीरव ने अपने वक्तव्य में खास तौर से रेखांकित किया, कि “कुछ किताबें जीवन में ऐसी होती हैं जिन्हें हम कभी नहीं भूल पाते। साहित्य तो हम बहुत पढ़ते हैं कहानियाँ, उपन्यास , आत्मकथाएँ , और बहुत सी किताबें हमें हमारे सफर के साथ चलती हैं। बहुत सी पढ़ने के बाद छूट जाती हैं और बहुत सी का पढ़ने के बाद पता नहीं चलता कि कहाँ गईं। याद ही नहीं रहता स्मृतियों में कि कौन सी किताब पढ़ी थी। ये वह किताब थी जिसे मैं ने पढ़ा ,जो मेरे संग संग चलती रही, जो मुझे कई दिनों तक डिस्टर्ब करती रही,जो ज़िन्दगी की मुश्किलों के बीच में कोई व्यक्ति कैसे रास्ता बनाता है, बताती है। बेशक ये वह किताब है जो अँधेरे से लड़ने के लिए एक दिये के समान है। ए ज़िन्दगी तुम मेरे घर आ ही गई हो तो अब न जाना ज़िन्दगी।“

मुख्य अतिथि वरिष्ठ कहानीकार सुषमा मुनींद्र ने कहा कि “संतोष जी अपनी ज़िन्दगी में हादसों का शिकार होती रहीं। दुःख-दर्द सहती रहीं। लेकिन किताब और कलम को ही उन्होंने हर दर्द की दवा बना लिया। अपनी जिन स्मृतियों को उन्होंने संजो कर रखा वही स्मृतियाँ संजीवनी का काम करती रहीं। “

साहित्यकारों का एक बड़ा काफिला

प्रमुख वक्ता और वरिष्ठ कहानीकार डॉ विद्या सिंह ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संतोष श्रीवास्तव की आत्मकथा पढ़कर मालूम पड़ता है कि वे किस तरह एक एक चुनौती को रौंदकर आगे बढ़ती रहीं। उन्होंने अपनी नैतिक क्षमता के बल पर साहित्यकारों का एक बड़ा काफिला भी जोड़ा। जो अंतर्राष्ट्रीय विश्वमैत्री मंच के नाम से जाना जाता है।

समकालीन कथाकार विनीता राहुरीकर ने आत्माकथा की समीक्षा करते हुए कहा कि सबसे पहले तो आत्मकथा लिखना ही बहुत मुश्किल काम है। सुख को लिखना तो आसान है। दुःख को लिखना उस दुःख को फिर से जीना है। ये केवल संतोष जी जैसे बिरले लोग ही हैं जो इस तरह तटस्थ और निरपेक्ष भाव से इस काम को अंजाम दे पाते हैं। यह उनकी पीड़ाओं और संघर्ष पर उनकी विजय गाथा के समान है। बेशक यह तत्कालीन परिस्थितियों का बेहतरीन दस्तावेज है।

अतीत और भविष्य दोनों मेरे हमसफ़र : संतोष श्रीवास्तव

कार्यक्रम का सञ्चालन मुज़फ्फर सिद्दीकी ने किया। अंत में पुस्तक चर्चा पर सभी का आभार व्यक्त करते हुए संतोष श्रीवास्तव ने कहा कि ज़िन्दगी को मैंने बड़ी शिद्दत से चाहा है। मैं समझती हूँ ये जो मुझे ज़िन्दगी मिली है बस एक बार ही है। इसका सम्मान करना चाहिए। मेरे सरोकार मेरी प्रतिबद्धता जन और जीवन के प्रति है। मैं मानती हूं कि लेखन एक ऐसा सफर है जहां अतीत और भविष्य दोनों मेरे हमसफ़र हैं। मैं तमाम वैज्ञानिक प्रगति, भूमंडलीकरण, बाजारवाद ,छिछली राजनीति, दृश्य श्रव्य मीडिया, इंटरनेट और साहित्य की चुनौतियों के सामने जिरह बख्तर बांध पर खड़ी हूँ।

कार्यक्रम में वरिष्ठ सहत्यकारों ने उपस्थिति दर्ज करायी। नीलम कुलश्रेष्ठ, साधना वैद्य, प्रगति गुप्ता, कनक हरलालका, निहाल चंद शिवहरे, आनंद तिवारी, जानकी बघेल, निधि मद्धेशिया अर्चना नायडू, पवन जैन, मधु जैन महेश पालीवाल सहित 40 साहित्यकारों की उपस्थिति रही।

-मुज़फ्फर सिद्दीकी की रिपोर्ट

Vishal Gupta 'Ajmera'

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