नई दिल्ली। संसद ने बुधवार को तीन प्रमुख श्रम सुधार विधेयकों को मंजूरी दे दी, जिनके तहत कंपनियों को बंद करने की बाधाएं खत्म होंगी और अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की इजाजत के बिना कर्मचारियों को निकालने की अनुमति होगी। राज्यसभा ने ध्वनि मत से औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा पर शेष तीन श्रम संहिताओं को पारित किया। श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने इन विधेयकों के कानून बनने पर होने वाले फायदे भी गिनाए। कैबिनेट मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि आजादी के 73 साल बाद मजदूरों को अब न्याय मिल रहा है जिसकी वे प्रतीक्षा कर रहे थे।
इन तीनों विधेयकों को लोकसभा ने मंगलवार को पारित कर दिया था और अब इन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। संतोष गंगवार ने तीनों श्रम सुधार विधेयकों पर हुई बहस का जवाब देते हुए कहा, ”श्रम सुधारों का मकसद बदले हुए कारोबारी माहौल के अनुकूल पारदर्शी प्रणाली तैयार करना है।”
गंगवार ने बताया कि 16 राज्यों ने पहले ही अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना फर्म को बंद करने और छंटनी करने की इजाजत दे दी है। उन्होंने कहा कि रोजगार सृजन के लिए यह उचित नहीं है कि इस सीमा को 100 कर्मचारियों तक बनाए रखा जाए क्योंकि इससे नियोक्ता अधिक कर्मचारियों की भर्ती से कतराने लगते हैं और वे जानबूझकर अपने कर्मचारियों की संख्या को कम स्तर पर बनाए रखते हैं।
उन्होंने कहा कि इस सीमा को बढ़ाने से रोजगार बढ़ेगा और नियोक्ताओं को नौकरी देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा। ये विधेयक कर्मचारियों के हितों की रक्षा करेंगे तथा भविष्य निधि संगठन और कर्मचारी राज्य निगम के दायरे में विस्तार करके श्रमिकों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेंगे।
सरकार ने 29 से अधिक श्रम कानूनों को चार संहिताओं में मिला दिया था और उनमें से एक संहिता (मजदूरी संहिता विधेयक, 2019) पहले ही पारित हो चुकी है। राज्यसभा में बुधवार को पारित हुए विधेयक संहिताएं- ‘उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्यदशा संहिता 2020, ‘औद्योगिक संबंध संहिता 2020 और ‘सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 हैं। इनमें किसी प्रतिष्ठान में आजीविका सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा को विनियमित करने, औद्योगिक विवादों की जांच एवं निर्धारण तथा कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा संबंधी प्रावधान किए गए हैं।
प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि इन विधेयकों के प्रावधानों के तहत श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी और समय से मजदूरी की गारंटी होगी। इन विधेयकों के तहत श्रमिकों को वेतन, सामाजिक व स्वास्थ्य सुरक्षा मिल सकेगी। इसके अलावा महिलाओं और पुरुषों के बीच के भेद खत्म होगा और उन्हें समान वेतन मिल सकेगा।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने इन विधेयकों को क्रांतिकारी बताते हुए कहा कि इनसे श्रमिकों को न्याय मिल सकेगा जो अब तक उन्हें नहीं मिल सका है। आठवले ने सुझाव दिया कि नियमित प्रकृति वाले काम में ठेके पर कर्मचारी नहीं रखे जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायालय ने भी इस संबंध में फैसला किया है। उन्होंने कहा कि ठेका पद्धति को समाप्त करने के लिए कानून लाना चाहिए।
चर्चा की शुरूआत करते हुए भाजपा के विवेक ठाकुर ने कहा कि स्थायी संसदीय समिति ने इन तीनों विधेयकों पर विस्तृत चर्चा की। बाद में श्रम मंत्रालय ने भी विभिन्न पक्षों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि एक बड़ा तबका इन विधेयकों के दायरे में आएगा। उद्योगों में श्रम की अहम भूमिका का जिक्र करते हुए उन्होंने इसे प्रगतिशील श्रम सुधार बताया। ठाकुर ने कहा कि श्रमिक देश की आत्मा हैं और उनके योगदान के बिना उद्योग की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार श्रमिकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए ये विधेयक लाए गए हैं। इसके प्रावधानों से कारोबार करने में आसानी होगी।
जद (यू) के आरसीपी सिंह ने तीनों विधेयकों का समर्थन करते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक कदम है जिसमें 25 कानूनों को एक संहिता में समाहित किया गया है। पहले सबकी अलग अलग परिभाषा, अलग प्राधिकार आदि होते थे लेकिन अब सबको समाहित किया जाएगा जिससे अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
भाजपा के राकेश सिन्हा ने भी इन विधेयकों को ऐतिहासिक बताया और कहा कि इससे सामाजिक समावेशीकरण को बढ़ावा मिलेगा और लैंगिक भेदभाव समाप्त होगा। सिन्हा ने कहा कि कुल श्रमिकों में महिलाएं की भी खासी संख्या है अब उन्हें भी समान अधिकार, समान अवसर, समान पारिश्रमिक मिलेगा जिससे महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
चर्चा में बीजद के सुभाष चंद्र सिंह, अन्नाद्रमुक के एस आर बालासुब्रमण्यम, तेदपा के के रवींद्र कुमार आदि ने भी भाग लिया और श्रमिकों के कल्याण की जरूरत पर बल दिया।
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