इंसान की जान बचाने के लिए जानवरों के दिल, फेफड़े और लिवर का इस्तेमाल कर पाना मेडिकल साइंस के लिए हमेशा से यक्ष प्रश्न रहा है। सूअर के दिल के प्रत्यारोपण से इसका जवाब मिल सकता है।

गुवाहाटी। यह विज्ञान का नया चमत्कार है। जल्द ही  सूअर का दिल किसी इंसान के शरीर में धड़क सकता है। यह बात सुनने में जरूर अटपटी लगती है लेकिन वैज्ञानिकों ने ऐसा कर दिखाया है।  दरअसल, दुनियाभर में अंग दान करने वालों की भारी कमी है। इसके चलते मानव की जान बचाने के लिए जानवरों के दिल,फेफड़े और लिवर का इस्तेमाल कर पाना मेडिकल साइंस के लिए हमेशा से यक्ष प्रश्न  रहा है। अब वैज्ञानिकों ने इसका समाधान खोज लिया है। इस तकनीक से हृदय रोगियों को एक नई जिंदगी मिल सकती है।

बड़ी सफलता लगी हाथ

क्रॉस स्पीशीज ऑर्गन ट्रांस्प्लांटेशन यानि अलग-अलग किस्म के जीवों के आपस में अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि इस दिशा में एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। जर्मन, स्‍वीडन और स्‍वीटजरलैंड केवैज्ञानिकों ने सुअर के दिल का मानव में सफल प्रत्‍यारोपण किया। वैज्ञानिकों नेपाया कि प्रत्‍यारोपण के बाद वह व्‍यक्ति छह माह तक जीवित रहा।  

सूअर ही बेहतर क्यों

वैज्ञानिक 1960 के दशक से कई जानवरों के गुर्दे, हृदय और यकृत को इंसानों में प्रत्यारोपितकरने की कोशिशें कर रहे हैं।इंसानों में हृदय प्रत्यारोपण के लिए शुरुआत में उनके सबसे करीबी रिश्तेदार बंदरों और लंगूरों के हृदय का इस्तेमाल किएजाने के बारे में सोचा गया था। लेकिन, इन जानवरों के विकास में एक लंबा समय लगताहै और चिंपैंजी जैसे जानवर तो लुप्तप्राय जानवरों की श्रेणी में हैं। इसके अलावाबंदरों और लंगूरों का इंसानों से जेनेटिक तौर पर बेहद करीबी होने से बीमारियों केआपस में फैलने का भी एक बड़ा खतरा हो सकता था। इसलिए सूअरों को एक बेहतर विकल्प केतौर पर चुना गया,क्योंकि उनकेहृदय का आकार भी लगभग इंसानी दिल की ही तरह होता है। साथ ही उनके साथ रोगों केसंक्रमण का खतरा भी कम है। इनका विकास भी कम समय में हो जाता है और ये आसानी से उपलब्ध भी हैं।

हर साल बचाई जा सकेगी हजारों लोगों की जिंदगी

मैरीलैंड के नेशनल हार्ट, लंग एंड ब्लड इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इंसानों में भी यह ट्रांसप्लांट संभव हो जाता है, तो इससे हर साल हजारों लोगों की जिंदगी बचाई जा सकेगी। इस प्रयोग के दौरान पांच लंगूरों से जोड़ा गया सूअर का हृदय 945 दिनों तक जिंदा रहा था। लंगूरों में हृदय को प्रत्यर्पित नहीं किया गया था, बल्कि उसे लंगूर के पेट से दो बड़ी रक्त नलियों के जरिये संचार तंत्र से जोड़ा गया था। इस हृदय की धड़कन सामान्य हृदय की तरह ही थी लेकिन लंगूर का हृदय भी लगातार खून को पंप कर रहा था।

ऐसी स्थिति में अक्सर ऑर्गन रिजेक्शन हो जाने का खतरा रहता है। लेकिन इस प्रयोग में सूअर के हृदय को जेनेटिकली मॉडिफाई किया गया था ताकि वह लंगूर की प्राकृतिक प्रतिरोधी प्रणाली के अनुरूप खुद को ढाल ले। वैज्ञानिकों ने सूअर के हृदय में मानवीय जेनेटिक लक्षण भी डाले थे। साथ ही लंगूर को एसी दवा दी गई थी जो रोग प्रतिरोधी प्रणाली को निष्प्रभावी कर देती है।

भारत के डाक्टर बरुआ ने दो दशक पहले किया था दावा

हालांकि, भारतीय डॉक्टर धनी राम बरुआ का दावा है कि उन्‍होंने दो दशक पूर्व ही इस तकनीक को खोज निकाला था। उन्‍होंने मानव के अंदर सुअर के दिल का सफल प्रत्यारोपण किया था। इस प्रत्‍यारोपण के बाद वह व्‍यक्ति सात दिनों तक जीवित रहा। इस प्रत्‍यारोपण के चलते उन्‍हें जेल तक जाना पड़ा था। इन दिनों डॉ बरुआ गुवाहाटी से 20 किलोमीटर दूर सोनपुर नामक स्‍थान पर हर्ट सिटी में हृदय रोगियों को जीवन प्रदान कर रहे हैं। उनका यह हर्ट सिटी करीब 50 एकड़ में फैला हुआ है। 


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