नयी दिल्ली, 23 जनवरी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज सुभाष चंद्र बोस की 119वीं जयंती पर उनसे जुड़ी 100 गोपनीय फाइलों कीे डिजिटल प्रतियां सार्वजनिक कीं । इन फाइलों से नेताजी की मृत्यु से जुड़े विवाद को समझने में मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री ने फाइलों को सार्वजनिक किया और इनकी डिजिटल प्रतियां भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार में प्रदर्शित करने के लिए जारी कीं । प्रधानमंत्री ने एक बटन दबाकर इन फाइलों की प्रतियों को सार्वजनिक किया और उस समय सुषाभ चंद्र बोस के परिवार के सदस्य, केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा और बाबुल सुप्रियो मौजूद थे ।
बाद में मोदी और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने सार्वजनिक की गई इन फाइलों को देखा और वहां राष्ट्रीय अभिलेखागार में आधे घंटे तक रहे । उन्होंने बोस के परिवार के सदस्यों से भी बात की ।
-नेताजी के भाई सुरेश बोस ने 25 जनवरी को पत्र लिखकर पीएम शास्त्री से पूछा था कि नेताजी की मौत कब, कैसे और कहां हुई?
-13 मई 1962 को पीएम नेहरू ने कहा कि हालात इशारा करते हैं कि नेताजी की मौत हो गई है।-
-ताइवान सरकार के पास नेताजी प्लेन क्रैश का कोई रिकॉर्ड नहीं।
-5 जनवरी 1965 को लाल बहादुर शास्त्री ने 1965 में लिखा कि नेताजी की मौत हो चुकी है।
-नेताजी की 1945 में मौत होने की पुष्टि अब तक की जांच में नहीं हो पाई है।-कांग्रेस नेताजी की बेटी को 6 हजार रुपए सलाना देती थी।
-नेतीजी की बेटी को कांग्रेस 1964 तक पैसे देती रही।
-नेताजी की दो बेटियों की शादी के बाद कांग्रेस ने पैसे देने बंद कर दिए।
-1965 से कांग्रेस ने नेताजी के बेटी को पैसे नहीं दिए।
-नेताजी की पत्नी ने पैसे लेने से मना कर दिया था
बाद में मोदी और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने सार्वजनिक की गई इन फाइलों को देखा और वहां राष्ट्रीय अभिलेखागार में आधे घंटे तक रहे। उन्होंने बोस के परिवार के सदस्यों से भी बात की। पिछले वर्ष अक्तूबर में प्रधानमंत्री ने नेताजी के परिवार के सदस्यों से मुलाकात की थी और यह घोषणा की थी कि सरकार उनसे जुड़ी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करेगी। नेताजी के करीब 70 वर्ष पहले लापता होने के बारे में अभी भी रहस्य बरकरार है। नेताजी के लापता होने से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जांच के लिए गठित दो आयोगों ने यह निष्कर्ष निकाला कि बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइपेइ में विमान दुर्घटना में हुई जबकि न्यायमूर्ति एम के मुखर्जी के नेतृत्व में गठित तीसरे आयोग का यह निष्कर्ष नहीं था और उसका मानना था कि बोस इसके बाद भी जीवित थे। इस विवाद को लेकर नेताजी के परिवार में भी अलग-अलग विचार सामने आए हैं।
इस संबंध में चार दिसंबर को प्रधानमंत्री कार्यालय ने 33 गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक किया था और उसे एनएआई को सौंपा था। इसके बाद गृह और विदेश मंत्रालय ने नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की प्रक्रिया शुरू की और इसे बाद में एनएआई को हस्तांतरित कर दिया गया।
इससे पहले चंद्र कुमार बोस ने कहा, ‘हम महसूस करते हैं कि कुछ महत्वपूर्ण फाइलों को कांग्रेस के शासनकाल में नष्ट कर दिया गया ताकि सत्य को छिपाया जा सके। हमारे पास इस बात को समझने के लिए दस्तावेजी सबूत हैं। इसलिए हम महसूस करते हैं कि भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रूस, जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका में रखी गई फाइलों को जारी किया जा सके।’ उन्होंने कहा कि हमने अभी सभी फाइलों का अध्ययन नहीं किया है। लेकिन अभी तक जो कुछ हमने देखा है, उससे विमान दुर्घटना के बारे में परिस्थितिजन्य साक्ष्य है लेकिन निष्कर्ष निकालने लायक साक्ष्य नहीं है।
चंद्र कुमार बोस ने कहा कि यहां तक कि एक पत्र में हमने देखा, जो लाल बहादुर शास्त्री द्वारा सुरेश बोस को लिखा गया था, और उसमें विमान दुर्घटना का निष्कर्ष निकालने लायक साक्ष्य नहीं होने की बात है और केवल कुछ परिस्थितिजन्य साक्ष्य की बात है।
उन्होंने कहा कि पहले की तुलना में इस सरकार के रुख में बदलाव आया है। सबसे पहले नेताजी के बारे में तथ्यों को दबाने के रुख को त्यागा गया। और यह नेताजी के बारे में सचाई सामने लाने में सबसे महत्वपूर्ण होगा। समारोह में मौजूद नेताजी के भतीजे अरधेंदू बोस ने कहा कि बोस का परिवार और सम्पूर्ण देश पिछले सात दशकों से इस पल की प्रतीक्षा कर रह था। हम महसूस करते हैं कि इन फाइलों से इस विषय पर कुछ प्रकाश पड़ेगा।
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