गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर बुधवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में राष्ट्रपति ने जोर दिया कि देश की ताकत इसकी बहुलतावाद और विविधता में निहित है और भारत में पारंपरिक रूप से तर्को पर आधारित भारतीयता का जोर रहा है, न कि असहिष्णु भारतीयता का। हमारे देश में सदियों से विविध विचार, दर्शन एक दूसरे के साथ शांतिपूर्ण ढंग से प्रतिस्पर्धा करते रहे हैं। लोकतंत्र के फलने फूलने के लिए बुद्धिमतापूर्ण और विवेकसम्मत मन की जरूरत है। प्रणब मुखर्जी ने भारतीय लोकतंत्र की ताकत को रेखांकित किया लेकिन संसद और राज्य विधानसभाओं में व्यवधान के प्रति सचेत भी किया।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘2016-17 के प्रथमार्ध में अर्थव्यवस्था 7.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी जो पिछले वर्ष के बराबर थी जो सतत पटरी पर लौटने की स्थिति प्रदर्शित करती है। हम राजकोषीय सुदृढीकरण के मार्ग पर दृढ़ता से बढ़ रहे हैं और मुद्रास्फीति की दर राहत पहुंचाने वाले स्तर पर है।’ उन्होंने कहा कि जो चीजें हमें यहां तक लेकर आई है, वे देश को आगे ले जायेंगी लेकिन देश को बदलाव की बयार को लेकर तेजी से व्यवस्थित होना होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि भयंकर रूप से प्रतिस्पर्धी विश्व में, हमें अपनी जनता के साथ किए गए वादे पूरा करने के लिए पहले से अधिक परिश्रम करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें और अधिक परिश्रम करना होगा क्योंकि गरीबी से हमारी लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। हमारी अर्थव्यवस्था को अभी भी गरीबी पर तेज प्रहार करने के लिए दीर्घकाल में 10 प्रतिशत से अधिक वृद्धि दर हासिल करनी होगी। हमारे देशवासियों का पांचवां हिस्सा अभी तक गरीबी रेखा से नीचे बना हुआ है। गांधीजी का प्रत्येक आंख से हर एक आंसू पोंछने का मिशन अभी भी अधूरा है। मुखर्जी ने कहा कि हमें अपने लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए और प्रकृति के उतार-चढ़ाव के प्रति कृषि क्षेत्र को लचीला बनाने के लिए और अधिक परिश्रम करना है। हमें जीवन की श्रेष्ठ गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए, गांवों के हमारे लोगों को बेहतर सुविधाएं और अवसर प्रदान करने होंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमें विश्वस्तरीय विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों के सृजन द्वारा युवाओं को और अधिक रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए अधिक परिश्रम करना है। घरेलू उद्योग की स्पर्धात्मकता में गुणवत्ता, उत्पादकता और दक्षता पर ध्यान देकर सुधार लाना होगा। राष्ट्र के नाम संबोधन में उन्होंने कहा कि हमें अपनी महिलाओं और बच्चों को सुरक्षा और संरक्षा प्रदान करने के लिए और अधिक परिश्रम करना है। महिलाओं को सम्मान और गरिमा के साथ जीवन जीने में सक्षम बनना चाहिए। बच्चों को पूरी तरह से अपने बचपन का आनंद उठाने में सक्षम होना चाहिए। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हमें उपभोग के उन तरीकों को बदलने के लिए और अधिक परिश्रम करना है जिनसे पर्यावरणीय और पारिस्थिकीय प्रदूषण हुआ है। हमें बाढ़, भूस्खलन और सूखे के रूप में, प्रकोप को रोकने के लिए प्रकृति को शांत करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें और अधिक परिश्रम करना होगा क्योंकि निहित स्वार्थो द्वारा अभी भी हमारी बहुलवादी संस्कृति और सहिष्णुता की परीक्षा ली जा रही है। ऐसी स्थितियों से निपटने में तर्क और संयम हमारे मार्गदर्शक होने चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘हमें आतंकवाद की बुरी शक्तियों को दूर रखने के लिए और अधिक परिश्रम करना है। इन शक्तियों का दृढ़ और निर्णायक तरीके से मुकाबला करना होगा । हमारे हितों की विरोधी इन शक्तियों को पनपने नहीं दिया जा सकता।’ उन्होंने कहा कि हमें अपने उन सैनिकों और सुरक्षाकर्मियों की बेहतरी को सुनिश्चित करने के लिए और अधिक परिश्रम करना है, जो आंतरिक और बाह्य खतरों से हमारी रक्षा करते हैं। हमें और अधिक परिश्रम करना है क्योंकि हम सभी अपनी मां के लिए एक जैसे बच्चे हैं। और हमारी मातृभूमि, हममें से प्रत्येक से, चाहे हम कोई भी भूमिका निभाते हों। हमारे संविधान में निहित मूल्यों के अनुसार निष्ठा, समर्पण और दृढ़ सच्चाई के साथ अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए कहती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि यद्यपि हमारे निर्यात में अभी तेजी आनी बाकी है, परंतु हमने विशाल विदेशी मुद्रा भंडार वाले एक स्थिर क्षेत्र को कायम रखा है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत में जन्मी, नागरिकों की तीन पीढ़ियां औपनिवेशिक इतिहास के बुरे अनुभवों को साथ लेकर नहीं चलती हैं। इन पीढ़ियों को स्वतंत्र राष्ट्र में शिक्षा प्राप्त करने, अवसरों को खोजने और एक स्वतंत्र राष्ट्र में सपने पूरे करने का लाभ मिलता रहा है। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि इससे उनके लिए कभी-कभी स्वतंत्रता को हल्के में लेना असाधारण पुरुषों और महिलाओं द्वारा इस स्वतंत्रता के लिए चुकाये गए मूल्यों को भूल जाना और स्वतंत्रता के पेड़ की निरंतर देखभाल और पोषण की आवश्यकता को विस्मृत कर देना आसान हो जाता है।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र ने हम सब को अधिकार प्रदान किए हैं। परंतु इन अधिकारों के साथ-साथ दायित्व भी आते हैं, जिन्हें निभाना पड़ता है। गांधीजी ने कहा, आजादी के सर्वोच्च स्तर के साथ कठोर अनुशासन और विनम्रता आती है। अनुशासन और विनम्रता के साथ आने वाली आजादी को अस्वीकार नहीं किया जा सकता, अनियंत्रित स्वच्छंदता अस5यता की निशानी है, जो अपने और दूसरों के लिए समान रूप से हानिकारक है।
राष्ट्रपति ने कहा कि आज युवा आशा और आकांक्षाओं से भरे हुए हैं। वे अपने जीवन के उन लक्ष्यों को लगन के साथ हासिल करते हैं, जिनके बारे में वे समझते हैं कि वे उनके लिए प्रसिद्धि, सफलता और प्रसन्नता लेकर आएंगे। वे रोजगार के साथ-साथ जीवन का प्रयोजन भी ढूंढते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों के विश्वास और प्रतिबद्धता ने हमारे संविधान को जीवन प्रदान किया और हमारे राष्ट्र के संस्थापकों ने, बुद्धिमत्ता और सजगता के साथ भारी क्षेत्रीय असंतुलन और बुनियादी आवश्यकताओं से भी वंचित विशाल नागरिक वर्ग वाली एक गरीब अर्थव्यवस्था की तकलीफों से गुजरते हुए, नए राष्ट्र को आगे बढ़ाया।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हमारे संस्थापकों द्वारा निर्मित लोकतंत्र की मजबूत संस्थाओं को यह श्रेय जाता है कि पिछले साढ़े छह दशकों से भारतीय लोकतंत्र अशांति से ग्रस्त क्षेत्र में स्थिरता का मरूद्यान रहा है। उन्होंने कहा कि 1951 में 36 करोड़ की आबादी की तुलना में, अब हम 1.3 अरब आबादी वाले एक मजबूत राष्ट्र हैं। उसके बावजूद, हमारी प्रति व्यक्ति आय में दस गुना वृद्धि हुई है, गरीबी अनुपात में दो तिहाई की गिरावट आई है, औसत जीवन प्रत्याशा दुगुनी से अधिक हो गई है, और साक्षरता दर में चार गुना बढ़ोतरी हुई है।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘आज हम विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था हैं। हम वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति के दूसरे सबसे बड़े भंडार, तीसरी सबसे विशाल सेना, परमाणु क्लब के छठे सदस्य, अंतरिक्ष की दौड़ में शामिल छठे सदस्य और दसवीं सबसे बड़ी औद्योगिक शक्ति हैं। एक निवल खाद्यान्न आयातक देश से भारत अब खाद्य वस्तुओं का अग्रणी निर्यातक बन गया है। अब तक की यात्रा घटनाओं से भरपूर, कभी-कभी कष्टप्रद, परंतु अधिकांश समय आनंददायक रही है।
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