अयोध्या। (Ram Mandir Bhoomi Poojan Ceremony) रामनगरी में राम जन्मभूमि मंदिर शिलान्यास कार्यक्रम के अनुष्ठान शुरू हो गए हैं। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि भारत की मिट्टी में जन्मीं प्रमुख 36 परंपराओं के 135 संतों और अन्य अतिथियों को आमंत्रित किया गया है। नेपाल के संत भी आएंगे। समारोह में आने वालों को निमंत्रण पत्र और परिचय पत्र लाना होगा। प्रातः10:30 बजे के बाद समारोह स्थल में एंट्री नहीं मिलेगी। भूमि पूजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 9 शिलाओं की स्थापना करेंगे।
चंपत राय ने सोमवार को मीडिया को बताया कि निमंत्रण पत्र पर सिक्योरिटी कोड है जिससे यह एक बार ही इस्तेमाल होगा। कार्यक्रम में मोबाइल फोन और बैग लाने पर रोक है। मंच पर प्रधानमंत्री के साथ ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, संघ प्रमुख मोहन भागवत और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रहेंगे।
चंपत राय ने कहा कि जनकपुर का बिहार, उत्तर प्रदेश, अयोध्या से रिश्ता है। जानकी मंदिर के महंत आएंगे। हमने संतों को बुलाया है। कुछ लोग संतों को ही दलित कहते हैं। जिन्हें कुछ लोग दलित कहते हैं वे साधु हो गए हैं, ऐसे भी अनेक लोग भूमि पूजन में आ रहे हैं। भारत की भूगोल का हर हिस्से से प्रतिनिधित्व यहां होगा। संत-महात्मा मिलाकर करीब 175 लोग होंगे।
ट्रस्ट के महासचिव ने 5 अगस्त को भूमि पूजन के दिन रामलला को पहनाई जाने वाली हरे रंग के पोशाक पर हो रहे विवाद पर सफाई दी। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को नरेंद्र मोदी से डर है या वे हरे रंग से प्रभावित हैं, यह मुझे नहीं मालूम। भगवान राम के शृंगार में वस्त्रों का चयन करना मुख्य पुजारी की जिम्मेदारी है और यही परंपरा है। इसका संबंध प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) या श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट से नहीं है।
चंपत राय ने कहा कि हरा रंग प्रकृति और भारत की समृद्धि का प्रतीक है। बुध ग्रह का संबंध हरे रंग से है। रामलला विराजमान वहां जब से बैठे हैं इस परंपरा का पालन तभी से हो रहा है। इस पर टिप्पणी करना ठीक नहीं है। रंग के ऊपर चर्चा करना बुद्धि की विकलांगता का प्रतीक है। जिनके पार्कों में हरियाली नहीं होती वे मकान की छतों पर गमले रखकर हरियाली की कोशिश करते हैं। यह हिंदुस्तानी की समृद्धि का प्रतीक है।
दरअसल, कुछ लोगों ने हरे रंग को इस्लाम से जोड़ दिया था। इसी के मद्देनजर चंपत राय को यह सफाई देनी पड़ी।
दशनामी संन्यासी परंपरा, रामानंद वैष्णव परंपरा, रामानुज परंपरा, नाथ परंपरा, निंबार्क, माधवाचार्य, वल्लभाचार्य, राम सनेही, कृष्ण प्रणामी, उदासीन, निर्मल संत, कबीर पंथी, चिन्मय मिशन, रामाकृष्ण मिशन, लिंगायत, वाल्मीकि संत, रविदासी संत, आर्य समाज, सिख समाज।
बौद्ध संत, जैन संत, कैवल्य ज्ञान, संत पंथ, इस्कान, स्वामी नारायण, वारकरी, एकनाथ, बंजारा संत, वनवासी संत, आदिवासी गौंड, गुरु परंपरा, भारत सेवाश्रम संघ, आचार्य समाज, संत समिति, सिंधी संत, अखाड़ा परिषद पदाधिकारी।
चंपत राय ने बताया कि चातुर्मास में पीठ पर जो संत बैठे हैं, उनके नाम सूची से हटाए गए हैं। एक-एक व्यक्ति से फोन से बात करके पूछा गया है कि आप आ पाएंगे या नहीं।
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