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सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ वसूली नोटिस वापस, सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद झुकी उत्तर प्रदेश सरकार

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश सरकार ने सीएए (CAA) विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ जारी वसूली नोटिस (Recovery Notice) वापस ले लिये हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की वकील गरिमा प्रसाद ने बताया कि राज्य सरकार ने 14 और 15 जनवरी को आदेश जारी कर सभी 274 नोटिस वापस ले लिये हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई थी। राज्य सरकार की ओर से सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान को लेकर यह कार्रवाई की गई थी।  वसूली गयी धनराशि करोड़ों में सीएए के खिलाफ 2019 में प्रदर्शन हुए थे। इस दौरान सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा था। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने रिकवरी नोटिस जारी किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने दी यह छूट

सुप्रीम कोर्ट के न्यायामूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने जो भी रकम कथित प्रदर्शनकारियों से वसूली है, वह वापस करे। साथ ही सरकार को इस बात की इजाजत दे दी है कि वह सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ नए कानून उत्तर प्रदेश रिकवरी ऑफ डैमेज टू प्रॉपर्टी एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी एक्ट के तहत कार्रवाई कर सकती है।

इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार की एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने कहा कि प्रदर्शनकारियों और सरकार को इस बात की इजाजत देनी चाहिए कि वह क्लेम ट्रिब्यूनल के सामने जाएं। मामले में रिकवर की गई रकम को वापस करने का आदेश नहीं दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार करने से मना कर दिया और कहा कि रिकवरी नोटिस वापस हो चुका है और कार्रवाई खत्म हो गई। उत्तर प्रदेश सरकार रिकवर की गई रकम वापस करे।

सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी नाराजगी

11 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सीएए कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी रिकवरी नोटिस पर कड़ी नाराजगी जताई थी। अदालत ने यूपी सरकार को आखिरी मोहलत देते हुए कहा था कि वह रिकवरी से संबंधित कार्रवाई को वापस ले। साथ ही चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर कार्रवाई नहीं वापस की गई तो हम इसे खारिज कर देंगे क्योंकि यह नियम के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमारे आदेश के तहत जो नियम तय हैं, उसके तहत कार्रवाई नहीं हुई है।

उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिसंबर 2019 में सीएए कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ रिकवरी कार्यवाही शुरू की गई है और यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय नियम के खिलाफ है और यह कार्रवाई टिकने वाली नहीं है। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अगु‌वाई वाली पीठने कहा था कि यूपी सरकार इस मामले में शिकायती, निर्णायक और अभियोजन खुद बन गया है और आरोपियों की संपत्ति कुर्क करने की कार्रवाई कर रही है।

90 साल का व्यक्ति आरोपी

सुप्रीम कोर्ट में परवेज आरिफ टिटू की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि जिला प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ नोटिस जारी किया है और प्रदर्शन के दौरान हुई सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए रिकवरी नोटिस जारी किया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब मांगा था। याचिकाकर्ता ने कहा था कि सरकार की ओर से नोटिस मनमाने तरीके से जारी की गई है। नोटिस एक ऐसे शख्स के खिलाफ जारी किया गया जो छह साल पहले मर चुका है और उनकी उम्र मरने के वक्त 94 साल की थी। साथ ही ऐसे लोग भी हैं जिन्हें प्रदर्शनकारी बताते हुए नोटिस जारी किया गया उनमें 2 की उम्र 90 साल से ऊपर है।

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने कहा था कि इस मामले में 106 एफआईआर दर्ज की गई है और 833 लोगों के खिलाफ दंगा-फसाद का केस दर्ज किया गया है। साथ ही 274 लोगों को रिकवरी नोटिस जारी किया गया है। इन 274 नोटिस में 236 में आदेश पारित हो चुका है और जबकि 38 मामले बंद हो चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आपको कानून का पालन करना होगा। हम आपको आखिरी मौका 18 फरवरी तक देते हैं। आप एक कागजी कार्रवाई से इसे वापस ले सकते हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि जब वह आदेश दे चुकी है कि न्याय का निर्णय न्यायिक अधिकारी करेंगे तो फिर कैसे एडीएम ने कार्यवाही सुनी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमारी चिंता दिसंबर 2019 के नोटिस से संबंधित है जो नोटिस सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के बाद जारी हुए हैं। आप हमारे आदेश को बाईपास नहीं कर सकते हैं। आपने कैसे एडीएम को नियुक्त कर दिया जबकि हमने कहा हुआ था कि रिकवरी नोटिस की कार्रवाई में न्यायिक अधिकारी होने चाहिए। दिसंबर 2019 में जो भी नोटिस जारी हुआ और उस पर जो कार्रवाई हुई है वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय फैसले के खिलाफ है।

gajendra tripathi

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