नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) बताया। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि “स्वास्थ्य का अधिकार” मौलिक अधिकार है। सरकार सस्ते इलाज की व्यवस्था करे। जो लोग कोरोना वायरस महामारी से बच रहे है वे आर्थिक तौर पर खत्म हो रहे हैं। इसके साथ ही अदालत ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को सख्ती से कोरोना गाइडलाइंस का पालन करने का निर्देश दिया।

क्या है स्वास्थ्य का अधिकार?

एक कल्याणकारी राज्य में यह सुनिश्चित करना राज्य का दायित्व होता है कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए परिस्थितियों का निर्माण किया जाए और उनकी निरंतरता को सुनिश्चित किया जाए। यह भी सत्य है कि जीवन का अधिकार, जो सबसे कीमती मानव अधिकार है और जो अन्य सभी अधिकारों की संभावना को जन्म देता है, उसकी व्याख्या एक व्यापक और विस्तृत प्रकार से की जानी चाहिए और उच्चतम/उच्च न्यायालयों द्वारा अपने तमाम निर्णयों में ऐसा किया भी गया है।

यदि भारतीय संविधान की बात करें तो यह सत्य है कि इसके अंतर्गत कहीं विशेष रूप से स्वास्थ्य के अधिकार (Right to Health) को एक मौलिक अधिकार के रूप में चिन्हित नहीं किया गया है, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न निर्णयों के माध्यम से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 की उदार व्याख्या करते हुए इसके अंतर्गत स्वास्थ्य के अधिकार को एक मौलिक अधिकार माना है। गौरतलब है कि संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। हालांकि, भारतीय संविधान के तहत विभिन्न प्रावधान ऐसे हैं जो यदि बड़े पैमाने पर देखे जाएं तो वे जन स्वास्थ्य से संबंधित हैं लेकिन मौलिक अधिकार के रूप में स्वास्थ्य के अधिकार को अनुच्छेद 21 ही पहचान देता है। इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार को केवल पशु समान अस्तित्व तक सीमित नहीं किया जा सकता है। इसका मतलब सिर्फ शारीरिक उत्तरजीविता से कहीं अधिक होता है और यह सुप्रीम कोर्ट के तमाम निर्णयों में साफ़ किया जा चुका है।

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