उसकी यह टिप्पणी तब आई है जब सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एकमत से 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के उस हिस्से को निरस्त कर दिया जिसके तहत परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना अपराध था। न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान संविधान में प्रदत्त समता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने एक बयान में कहा,‘उच्चतम न्यायालय के फैसले की तरह हम भी इसे (समलैंगिकता) अपराध नहीं मानते। ’
बहरहाल, उन्होंने संघ के पुराने रुख को दोहराते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह और ऐसे संबंध ‘प्रकृति के साथ संगत’ नहीं होते हैं। उन्होंने कहा,‘ये संबंध प्राकृतिक नहीं होते इसलिए हम इस तरह के संबंध का समर्थन नहीं करते। ’ उन्होंने दावा किया कि भारतीय समाज ‘पारंपरिक तौर पर ऐसे संबंधों को मान्यता नहीं देता है। ’
कुमार ने कहा कि मनुष्य आमतौर पर अनुभवों से सीखता है इसलिए इस विषय पर चर्चा की जरुरत है और इसके सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर से निपटने की जरुरत है।
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