RSS के तीन दिवसीय सम्मेलन ‘‘भविष्य का भारत-आरएसएस का दृष्टिकोण’’ में दूसरे दिन भागवत ने इस टिप्पणी के जरिये आरएसएस के कामकाज और भाजपा के काम के बीच विभेद करने का प्रयास किया। भाजपा को वैचारिक तौर पर प्रायः संघ के साथ सम्बद्ध माना जाता है तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित इसके कई शीर्ष नेताओं की आरएसएस पृष्टभूमि रही है।
उन्होंने भाजपा का नाम लिये बिना कहा कि ऐसी धारणा है कि RSS किसी पार्टी विशेष के कामकाज में मुख्य भूमिका निभाता है क्योंकि उस संगठन में इसके बहुत सारे कार्यकर्ता हैं। भागवत ने कहा, ‘‘हमने कभी स्वयंसेवक से किसी पार्टी विशेष के लिए काम करने को नहीं कहा। हमने उनसे राष्ट्रीय हित के लिए काम करने वालों का समर्थन करने को अवश्य कहा है। आरएसएस राजनीति से दूर रहता है किन्तु राष्ट्रीय हितों के मुद्दे पर उसका दृष्टिकोण है।’’
उन्होंने कहा कि संघ का मानना है कि संविधान की परिकल्पना के अनुसार सत्ता का केन्द्र होना चाहिए तथा यदि ऐसा नहीं है तो वह इसे गलत मानता है। सम्मेलन के पहले दिन सोमवार को भागवत ने कहा कि आरएसएस प्रभुत्व नहीं चाहता तथा इसकी कोई परवाह नहीं है कि सत्ता में कौन आता है।
भागवत ने सोमवार को इस सम्मेलन के जरिये आरएसएस और उसकी विचारधारा को लेकर आशंकाओं को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने दावा किया कि आरएसएस बहुल लोकतांत्रिक है और तानाशाही नहीं।
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