मुंबई। बड़े-बुजुर्गों ने एक ही नसीहत दो तरह से दी है- “सोच-समझ कर बोलें” और “तौल कर बोलें”। शिवसेना के कद्दावर लेकिन बड़बोले नेता संजय राउत यहीं पर गलती कर गए। बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनसे “हरामखोर” पर जवाब तलब कर लिया है।
दरअसल, कंगना रणौत के कार्यालय में तोड़फोड़ के मामले में सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान अदालत में विवादित शब्द “हरामखोर” भी गूंजा। इस पर अदालत ने कहा कि संजय राउत को यह बताना होगा कि उन्होंने यह शब्द किसके लिए इस्तेमाल किया था। दरअसल, सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील डॉ. बीरेंद्र सराफ ने एक वीडियो क्लिप चलाया जिसमें राउत “वो हरामखोर लड़की” कहते हुए सुनाई दे रहे थे। अदालत ने डॉ. सराफ से कंगना रणौत के सभी ट्वीट और राउत के पूरे वीडियो साक्षात्कार को प्रस्तुत करने के लिए कहा है।
इस सुनवाई को दौरान हाईकोर्ट ने एक बार फिर बृह्नमुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) को फटकार लगाई है। बीएमसी पर तंज कसते हुए कहा कि कई मामलों (अवैध निर्माण गिराने का अदालत का आदेश) में आदेश के बाद भी ऐसा नहीं किया गया। यदि इस तरह की तेजी बीएमसी हर मामले में दिखाती तो मुंबई रहने के लिए और बेहतर शहर होता।
कंगना के वकील ने दलील दी कि बीएमसी की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। कंगना के वकीलों की जिरह पूरी हो गई है।
गौरतलब है कि कंगना रणोत सुशांत सिंह राजपूत मामले में काफी मुखर रही हैं। इस दौरान उन्होंने मुंबई की तुलना पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से कर दी थी। इसे लेकर शिवसेना और उनके बीच तनातनी चल रही है। शिवसेना के नेता संजय राउत सहित कई नेताओं ने उन्हें मुंबई न आने के चेतावनी दी थी। हालांकि वाई प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिलने के बाद वह 9 सितंबर को मुंबई पहुंची थीं। इसी दिन बीएमसी ने उनके दफ्तर को कथित अवैध निर्माण का हवाला देते हुए जेसीबी लाकर तोड़ दिया था। इस कार्रवाई के खिलाफ कंगना ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
कंगना रणौत ने पहले 9 सितंबर को स्टे की मांग की थी। बाद में उन्होंने तोड़फोड़ से हुए नुकसान को लेकर बीएमसी से 2 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा है। 25 सितंबर को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने बीएमसी से पूछा था कि क्या अवैध निर्माण को गिराने में वह हमेशा इतनी ही तेजी दिखाती है जितनी कंगना का बंगला गिराने में दिखाई? हाईकोर्ट की पीठ ने यह भी कहा था कि प्रदीप थोराट के मुवक्किल (शिवसेना नेता संजय राउत) ने वास्तव में वही किया जो उन्होंने कहा था। अदालत ने यह टिप्पणी उस संदर्भ में दी थी जिसमें शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में “उखाड़ दिया” नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। यह रिपोर्ट कंगना रणौत के पाली हिल बंगले के हिस्से को गिराए जाने के बाद प्रकाशित हुई थी।
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