@bareillylivedesk:आश्विनमास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या या महालया कहते हैं । जो व्यक्ति पितृ पक्ष के पन्द्रह दिनों तक श्राद्ध-तर्पण आदि नहीं करते हैं, वे अपने पितरों के लिए श्राद्ध आदि सर्वपितृ अमावस्या को करते हैं । जिनको अपने पितरों की तिथि याद नहीं हो, उनके निमित्त भी श्राद्ध, तर्पण, दान आदि पितृ पक्ष की अमावस्या को किया जाता है इसलिए इसे सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं । पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है इसलिए इसे पितृविसर्जनी अमावस्या भी कहते हैं ।
सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरगण अपने पुत्रादि के घर के द्वार पर पिण्डदान एवं श्राद्ध आदि की आशा में आते हैं, यदि वहां उन्हें अन्न-जल नहीं मिलता तो वे शाप देकर चले जाते हैं ।
श्राद्ध के द्वारा पितृ-ऋण उतारना आवश्यक है; क्योंकि जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्य और सुख-सौभाग्य आदि के लिए अनेक प्रयास किए, उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निरर्थक होता है । पितृ ऋण उतारने में कोई ज्यादा खर्चा भी नहीं है । केवल वर्ष में एक बार पितृ पक्ष में उनकी मृत्यु तिथि पर या अमावस्या को, आसानी से सुलभ जल, तिल, जौ, कुशा और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध और तर्पण करें और गो-ग्रास देकर अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से पितृ ऋण उतर जाता है ।
कैसे करें श्राद्ध ?
अपने पितरों का श्राद्ध पूर्ण श्रद्धा भाव से करना चाहिए । श्राद्ध में अपनी सामर्थ्यानुसार अच्छे-से-अच्छा पकवान खीर, पूरी, इमरती, दही बड़े, केसरिया दूध आदि पितरों के लिए बनाने चाहिए । ऐसे पकवानों से पितर बहुत तृप्त होते हैं और उनकी आत्मा सुख पाती है । इसी से पुत्र को उनका आशीर्वाद मिलता है और हमारा सौभाग्य और वंश परम्परा बढ़ती है । घर में सुख-शांति और धर्म-कर्म में रुचि बढ़ती है । परिवार में संतान हृष्ट-पुष्ट, आयुष्मान व सौभाग्यशाली होती है ।
आयु: पुत्रान् यश: स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम् ।
पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृ पूजनात् ।।
अर्थात्—पितरों का पूजन (पिण्डदान) करने वाला मनुष्य दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य की प्राप्ति करता है ।
पितरों को श्राद्ध का अन्न अमृत के रूप में मिलता है । जो पितर जिस योनि में होता है, उसे वहीं पर मंत्रों द्वारा श्राद्धान्न पहुंचता है । श्राद्ध कर्म में पंचबलि निकाल कर ही ब्राह्मण भोजन करायें । पंचबलि के लिए पांच जगह थोड़ा-थोड़ा सभी प्रकार का भोजन परोस कर हाथ में जल, रोली, चावल, पुष्प लेकर पंचबलि दान का संकल्प करें । पंचबलि में ये पांच बलि होती हैं—
गोबलि—गाय पितरों को भूलोक से भुव लोक तक पहुंचाती है और वैतरणी नदी पार कराती है ।
काकबलि—कौवा यम पक्षी है इसलिए श्राद्ध के अन्न का एक अंश इसे भी दिया जाता है ।
श्वानबलि—कुत्ता भी यम पशु है । यह दूरदर्शी भी है और रक्षक भी है ।
भिक्षुक—किसी भूखे भिखारी को भी श्राद्ध का अन्न अवश्य दिया जाता है।
पिपीलिकादिबलि—चीटीं आदि कीट पतंगों के लिए भी श्राद्ध के अन्न की व्यवस्था की गयी है, ताकि किसी भी अवस्था में हमारे पितरों को शांति और मोक्ष मिले ।
पंचबलि निकालकर कौवों के निमित्त निकाला गया अन्न कौवे को, कुत्ता का अन्न कुत्ते को और भिक्षुक का भाग भिखारी को देने के बाद बाकी सब भोजन गाय को खिला दें ।
फिर ब्राह्मणों के चरणों पर जल के छींटें लगाकर रक्षक मन्त्र बोलकर भूमि पर काले तिल बिखेर दें और ब्राह्मणों के रूप में अपने पितरों का ध्यान करना चाहिए । रक्षक मन्त्र का अर्थ है: ‘यहां सम्पूर्ण हव्य-कव्य के भोक्ता यज्ञेश्वर भगवान श्रीहरि विराजमान हैं, अत: उनकी उपस्थिति के कारण राक्षस यहां से तुरन्त भाग जाएं ।’ इसके बाद ब्राह्मणों को गरम-गरम भोजन करायें ।
यदि किसी पुरुष का श्राद्ध हो तो ब्राह्मण को धोती, कुर्ता, गमछा व दक्षिणा देकर तिलक लगाकर विदा करना चाहिए और यदि स्त्री का श्राद्ध हो तो ब्राह्मणी को भोजन कराकर साड़ी, ब्लाउज और दक्षिणा देकर विदा करें । विदा करते समय उनके चरण-स्पर्श अवश्य करने चाहिए ।
श्राद्ध कर्म की पूर्णता के लिए करें ये प्रार्थना
अन्नहीनं क्रियाहीनं विधिहीनं च यद् भवेत् ।
अच्छिद्रमस्तु तत्सर्वं पित्रादीनां प्रसादत: ।।
तथा
इसके बाद दक्षिण की ओर मुख करके पितरों से इस प्रकार प्रार्थना करें-हमारे कुल में दान देने वालों की, ज्ञान की और संतानों की वृद्धि हो । शास्त्रों, ब्राह्मणों, पितरों और देवताओं में हमारी श्रद्धा बढ़े । मेरे पास दान देने के लिए बहुत-से पदार्थ हों ।’
श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन कराते समय रखें इन बातों का ध्यान-
पितरों की शान्ति के लिए विशेष उपाय_
सेवा कछु कीन्हीं नहीं, दिया न कुछ भी ध्यान ।
गलती सब माफी करो, हमें जान अज्ञान ।।
दीप ज्योति हमने करी, लीजों पंथ निहार ।
जो कुछ भी हमसे बनो, दीनों तुम्हें अाहार ।।
नमस्कार पुनि पुनि करुं, रखियों वंश को ध्यान ।
आशीश सदा देते रहो फूले फले तव बगियान ।।
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