शीर्ष अदालत ने कहा कि इस हीरे को वापस लाने के लिए कानूनी उपचार खुला रहना चाहिए। सालिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया, ‘कोहिनूर को जबरन लिया हुआ या चुराया हुआ नहीं कहा जा सकता क्योंकि वर्ष 1849 में महाराजा रंजीत सिंह के उत्तराधिकारियों ने सिख युद्ध में उनकी मदद के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को इनाम के तौर पर दिया था।’
पीठ ने इसके बाद सालिसिटर जनरल से छह हफ्तों में विस्तृत जवाब सौंपने को कहा। पीठ में प्रधान न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति यूयू ललित शामिल थे। अदालत ने कहा, ‘हम जानना चाहेंगे कि क्या सरकार दावा जताना चाहती है? देखिए, हम इस अनुरोध को खारिज करने के इच्छुक नहीं हैं। अगर हम इसे खारिज करते हैं तो वह देश (ब्रिटेन) कह सकता है कि आपके उच्चतम न्यायालय ने अनुरोध खारिज कर दिया और इससे सरकार का कानूनी दावा नामंजूर होने की तरफ बढ सकता है।’
शीर्ष अदालत ने सरकार से ‘आल इंडिया ह्यूमन राइट्स एंड सोशल जस्टिस फ्रंट’ द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर अपना रूख स्पष्ट करने के लिए कहा था। इस याचिका में कोहिनूर हीरा देश में वापस लाने की मांग की गई थी।
कोहिनूर बड़ा, रंगहीन हीरा है जो 14वीं सदी की शुरुआत में दक्षिण भारत में मिला था। 108 कैरेट का कोहिनूर हीरा उपनिवेश युग में ब्रिटिश हाथों में आया था। इतिहास में इस पर मालिकाना हक को लेकर विवाद रहा है और भारत सहित कम से कम चार देशों ने इस हीरे पर अपना दावा जताया है।
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