शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वतीशंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती

भोपाल : द्वारका की शारदा पीठ और ज्योर्तिमठ बदरीनाथ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन हो गया है। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर स्थित झोतेश्वर परमहंसी गंगा आश्रम में रविवार दोपहर 3.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 99 साल के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। बीते 2 सितंबर को उन्होंने अपना 99वां जन्मदिन मनाया था। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। आजादी के आंदोलन में भी भाग लिया।  शंकराचार्य के शिष्य ब्रह्म विद्यानंद ने बताया कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को सोमवार को सायंकाल 5 बजे परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी जाएगी

हिंदुओं के सबसे बड़े धर्मगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद  सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। महज नौ साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। इस दौरान वह उत्तर प्रदेश के काशी पहुंचे और यहां स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा ली। साल 1942 के इस दौर में वो महज 19 साल की उम्र में क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए थे, क्योंकि उस समय देश में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई चल रही थी। इस लड़ाई के कारण वे वाराणसी में 9 महीने और मध्य प्रदेश की जेल में 6 महीने तक रहे।

स्वामी स्वरूपानंद 1950 में दंडी संन्यासी बने। उन्होंने ज्योर्तिमठ पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से पहचाने जाने लगे। 1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि मिली। वे स्वामी करपात्री महाराज के राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी बने।

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