नयी दिल्ली। अयोध्या के रामजन्म भूमि विवाद के मामले में शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर एक नया सुझाव दिया है। हलफनामे में कहा गया है कि 2010 में आये इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार जमीन के एक तिहाई हिस्से पर हक उनका है न कि सुन्नी वफ्फ बोर्ड का।
शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से दावा किया गया है कि बाबरी मस्जिद को मीर बांकी ने बनवाया था, जो कि एक शिया थे। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि शिया वफ्फ बोर्ड विवादित जगह पर भी दावा छोड़ सकता है, यदि सरकार द्वारा उन्हें दूसरी जगह पर ऐसी ही मस्जिद बनाने की जगह दे दी जाए।
शांतिपूर्ण समाधान नहीं चाहता सुन्नी बोर्ड
शिया वक्फ बोर्ड ने कहा कि विवादित जमीन पर मंदिर- मस्जिद दोनों बनाए जाने पर रोज झगड़े होंगे। इससे थोड़ी दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बनाई जा सकती है। हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा गया है कि कि सुन्नी वक्फ बोर्ड शांति पूर्ण तरीके से समाधान नहीं चाहता। इस मसले को सभी पक्ष आपस में बैठकर सुलझा सकते हैं और उच्चतम न्यायालय इसमें उन्हें वक्त दे। बोर्ड की तरफ से यह भी मांग की गई कि इसके लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई जाए, जो सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज की अगुआई में हो।
सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया था सभी पक्षों को नोटिस
इस कमेटी में हाईकोर्ट के दो सेवानिवृत्त जज, प्रधानमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी के अलावा और पक्षकार शामिल हों। शिया वफ्फ बोर्ड इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी पक्षकार था, हालांकि उच्च न्यायालय में विस्तृत दलील के लिए पैरवी नहीं की। 2011 में जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा उच्च अदालत ने सभी पक्षों को नोटिस जारी किया था। ये हलफनामा उसी नोटिस के जवाब में आया है।
Shia Waqf Board in SC affidavit: Masjid can be located in a Muslim dominated area at a reasonable distance from Shree Ram birth place pic.twitter.com/cRXnsydINS
— ANI (@ANI) August 8, 2017
यह था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षकारों में बांटने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में अपीलें दाखिल कर रखी हैं जो कि पिछले छह साल से लंबित हैं। इसी दौरान सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी।