आज 23 मार्च है यानि शहीदी दिवस । आज ही के दिन 86 साल पहले शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। तो आज हम आपको भगत सिंह के जीवन से जुड़ी ऐसी बातें बताने जा रहे हैं जो शायद ही आपको पता हो।
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान) के बंगा गांव में एक सिख परिवार में हुआ था। हालांकि उनके जन्म तारीख पर कुछ विरोधाभास है, लेकिन उनका परिवार 28 सितंबर को ही जन्मदिवस मनाता है। वहीं, कुछ जगहों पर 27 सितंबर को उनके जन्मदिन का जिक्र मिलता है।
भगत सिंह के पूर्वजों का जन्म पंजाब के नवांशहर के समीप खटकड़कलां गांव में हुआ था। इसलिए खटकड़कलां इनका पैतृक गांव है। भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह पहले सिख थे जो आर्य समाजी बने। इनके तीनों सुपुत्र-किशन सिंह, अजीत सिंह व स्वर्ण सिंह प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह पर गहरा असर डाला और वे भारत की आजादी के सपने देखने लगे।
भगत सिंह के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आने का एक बहुत बड़ा कारण था, उनका लाहौर स्थित ‘नर्सरी ऑफ पैट्रिआट्स’ के रूप में विख्यात नैशनल कालेज में सन् 1921 में दाखिला लेना। इस कॉलेज की शुरुआत लाला लाजपत राय ने की थी। कॉलेज के दिनों में भगत ने एक्टर के रूप में कई नाटकों मसलन राणा प्रताप, सम्राट चंद्रगुप्त और भारत दुर्दशा में हिस्सा लिया।
जानकर हैरानी होगी कि परिजनों ने जब भगत सिंह की शादी करनी चाही तो वह घर छोड़कर कानपुर भाग गए। अपने पीछे जो खत छोड़ गए, उसमें उन्होंने लिखा कि उन्होंने अपना जीवन देश को आजाद कराने के महान काम के लिए समर्पित कर दिया है। इसलिए कोई दुनियावी इच्छा या ऐशो-आराम उनको अब आकर्षित नहीं कर सकता।
‘लाहौर षड़यंत्र कांड’ के नाम से मशहूर मामले में भगतसिंह और दो अन्य क्रांतिकारियों शिवराम हरि राजगुर और सुखदेव थापर को दोषी करार देते हुए मृत्युदंड सुनाया गया था। तीनों क्रांतिकारियों को तत्कालीन लाहौर सेंट्रल जेल के शादमां चौक में 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटकाया गया था।
भगत सिंह को जिस दिन फांसी दी जानी थी उस रोज भी वो मुस्कुरा रहे थे। उनके चेहरे पर शिकन पर कोई निशान नहीं था लेकिन लाहौर की उस जेल में हर कैदी की आंखें नम थीं। एक दूसरे की बांहों में बांहें डालकर वो तीन दीवाने फांसी के तख्ते की तरफ बढ़ रहे थे। जेल के कायदे-कानून के मुताबिक भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी से पहले स्नान कराया गया। तीनों को नए कपड़े दिए गए और जल्लाद के सामने पेश होने से पहले उनका वजन नापा गया, जो देश की खातिर कुर्बान होने की खुशी में पहले से ज्यादा निकला। जेल की खामोशी अब चीखों में बदलने लगी थीं। सलाखों से हाथ लहराकर कैदी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। और हंसते-मुस्कराते भगत सिंह भी अब आवाज से आवाज मिला रहे थे। फांसी की कार्रवाई शुरू होने से पहले भगत सिंह ने अपनी ऊंची आवाज में देश को एक छोटा-सा संदेश भी दिया।