उच्चतम न्यायालय ने केंद्र एवं राज्यों की याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया है। याचिका करने वालों में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु भी शामिल हैं जहां चुनाव होने वाले हैं। इन याचिकाओं में विज्ञापनों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रधान न्यायाधीश के अलावा अन्य नेताओं के चित्र प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार किए जाने की मांग करते हुए कहा गया है कि यह आदेश संघीय ढांचा और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और पी. सी. घोष की पीठ ने कहा, ‘हम अपने उस फैसले की समीक्षा करते हैं जिसके तहत हमने सरकारी विज्ञापनों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के चित्रों के प्रकाशन को मंजूरी दी है। अब हम राज्यपालों, संबंधित विभागों के केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और संबंधित विभागों के मंत्रियों के चित्र प्रकाशित किए जाने की अनुमति देते हैं।’ पीठ ने कहा, ‘शेष शर्तें एवं अपवाद यथावत रहेंगे।’
केंद्र के अलावा कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ़ ने न्यायालय के 13 मई, 2015 के आदेश की समीक्षा किए जाने का अनुरोध किया था। केंद्र ने समीक्षा की मांग करते हुए कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) राज्य और नागरिकों को सूचना देने एवं हासिल करने की शक्ति देता है और इसमें अदालतें कटौती नहीं कर सकतीं और इसका नियमन नहीं कर सकती।
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