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नई दिल्ली। भारतीय पुलिस अंग्रेजों के जामने से ही “थर्ड डिग्री टॉर्चर” के लिए बदनाम रही है। पुलिस थानों में आरोपियों के साथ मारपीट, हवालात में मौत जैसी घटनाएं जब-तब सामने आती रहती हैं। मानवाधिकारी हनन के ऐसे मामलों को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट अत्यंत चिंतित और बेहद नाराज है। मंगलवार को एक मामले की सुनवाई को दौरान उसने सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय, एनसीबी और एनआईए जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी (CCTV) लगाने के मामले में केंद्र सरकार को फटकार लगाई।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हमें ऐसा लग रहा है कि सरकार अपने पैर पीछे खींच रही है। …ये नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित है और अदालत नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर चिंतित है।” 

सुप्रीम कोर्ट ने थानों में सीसीटीवी लगाने को लेकर बिहार और मध्य प्रदेश सरकारों को भी फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने कहा कि आपको अदालत के आदेश का सम्मान नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया है कि वह तीन सप्ताह के भीतर उसको सूचित करे कि केंद्रीय एजेंसियों के लिए कितना फंड आवंटित किया गया और सीसीटीवी कब लगाए जाएंगे।

दरअसल, पिछली सुनवाई में न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने थानों में सीसीटीवी लगाने का अपना फैसला परमवीर सिंह सैनी की याचिका पर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में मानवाधिकारों का उल्लंघन रोकने के लिए सभी पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था।

सीसीटीवी फुटेज से शिकायतों की जांच में होगी आसानी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि थानों के बाहरी हिस्से में लगने वाले सीसीटीवी कैमरे नाइट विजन वाले होने चाहिए। जिन थानों में बिजली और इंटरनेट नहीं है, वहां ये सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएँ। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सौर/पवन ऊर्जा समेत बिजली मुहैया कराने के किसी भी तरीके का उपयोग करके जितनी जल्दी हो सके बिजली दी जाए। आदालत ने अपने आदेश में कहा कि हिरासत में पूछताछ के दौरान आरोपी के घायल होने या मौत होने पर पीड़ित पक्ष को शिकायत करने का अधिकार है। सीसीटीवी फुटेज से ऐसी शिकायतों की जांच में आसानी होगी।

 
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