नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी और अन्य सह आरोपितों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बुधवार को हुई सुनवाई के बाद आदेश दिया कि अर्नब गोस्वामी और दो अन्य आरोपितों को 50,000 रुपये के बांड पर अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। देश की सबसे बड़ी अदालत ने मुंबई के पुलिस कमिश्नर को तत्काल आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का अंतरिम जमानत की मांग ठुकराना गलत था।
अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि अगर राज्य सरकारें व्यक्तियों को टारगेट करती हैं, तो उन्हें पता होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए शीर्ष अदालत है। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से इस सब (अर्नब द्वारा टीवी पर दिए जाने वाले तानों) को नजरअंदाज करने की नसीहत दी।
इससे पहले अर्नब गोस्वामी की अंतरिम जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान उनकी तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने मामले की जांच सीबीआइ से कराने की मांग की है। अर्नब ने बांबे हाईकोर्ट द्वारा जमानत से इन्कार किए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ने सख्त टिप्पणी की, “यदि हम एक संवैधानिक न्यायालय के रूप में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?… अगर कोई राज्य किसी व्यक्ति को जानबूझकर टारगेट करता है, तो एक मजबूत संदेश देने की आवश्यकता है। हमारा लोकतंत्र असाधारण रूप से लचीला है।”
बहस के दौरान हरीश साल्वे ने कहा कि द्वेष और तथ्यों को अनदेखा करते हुए राज्य की शक्तियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। इस मामले में मई 2018 में एफआइआर दर्ज की गई थी। दोबारा जांच करने के लिए शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल से पूछा, “एक ने आत्महत्या की है और दूसरे के मौत का कारण अज्ञात है। गोस्वामी के खिलाफ आरोप है कि मृतक के कुल 6.45 करोड़ बकाया थे और गोस्वामी को 88 लाख का भुगतान करना था। एफआईआर का कहना है कि मृतक मानसिक तड़पन या मानसिक तनाव से पीड़ित था? साथ ही धारा 306 के लिए वास्तविक उकसावे की जरूरत है। क्या एक को पैसा दूसरे को देना है और वह आत्महत्या कर लेता है तो यह उकसावा हुआ? क्या किसी को इसके लिए जमानत से वंचित करना न्याय का मखौल नहीं होगा?”
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “हो सकता है कि आप उनकी (अर्णब) विचारधारा को पसंद नहीं करते। मुझ पर छोड़ें, मैं उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर हाईकोर्ट जमानत नहीं देता है तो नागरिक को जेल भेज दिया जाता है।हमें एक मजबूत संदेश भेजना होगा। पीड़ित निष्पक्ष जांच का हकदार है। जांच को चलने दें, लेकिन अगर राज्य सरकारें इस आधार पर व्यक्तियों को लक्षित करती हैं तो एक मजबूत संदेश को बाहर जाने दें।”
गौरतलब है कि बांबे हाईकोर्ट ने इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाईक को आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के मामले में अर्नब गोस्वामी और दो अन्य लोगों को अंतरिम जमानत देने से इन्कार करते हुए उन्हें राहत के लिए स्थानीय अदालत जाने को कहा था।दरअसल, अलीबाग पुलिस अर्नब की पुलिस हिरासत चाहती है। इसकी मांग करते हुए अभियोजन पक्ष के विशेष सरकारी वकील पी घरात ने कहा कि अर्नब की गिरफ्तारी जरूरी थी, क्योंकि अन्वय की आत्महत्या से पहले लिखे गए पत्र में उनका नाम था। यदि गिरफ्तारी जरूरी नहीं होती, तो मजिस्ट्रेट न्यायिक हिरासत में उनसे पूछताछ की अनुमति नहीं देते।
अर्नब के वकीलों की ओर से मंगलवार दोपहर ही रायगढ़ सत्र न्यायालय में जमानत अर्जी दाखिल कर दी गई थी। अर्जी में अर्नब ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा है कि जिस आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में उन्हें गिरफ्तार किया गया है, उसकी पूरी जांच पहले हो चुकी है। रायगढ़ पुलिस इस मामले में 2019 में अपनी ए-समरी (क्लोजर रिपोर्ट) रायगढ़ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में जमा कर चुकी है। जमानत अर्जी में कहा गया है कि आवेदक जांच एजेंसियों से पूर्ण सहयोग करने को तैयार है।
अर्नब ने स्वीकार किया है कि अन्वय की कंपनी कानकार्ड एवं उनकी कंपनी एआरजी के बीच व्यावसायिक करार हुआ था। इसके तहत कानकार्ड द्वारा उनके स्टूडियो में कुछ काम किया जाना बाकी था। इसलिए एआरजी ने कानकार्ड के 74,23,014 रुपयों का भुगतान रोक दिया था। लेकिन, यह मामला दो कंपनियों के बीच था।
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