सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, शर्तों के साथ इच्छामृत्यु की अनुमति

नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इच्छा मृत्यु को मंजूरी देदी। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने शर्त के साथ इच्छामृत्यु को मंजूरी दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने सुरक्षा उपायों की गाइडलाइन्स जारी की है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को मान्यता देने की बात भी कही गई है।

सम्मान से मरना हर व्यक्ति का अधिकार

सुप्रीमकोर्ट ने गरिमा से जीने के अधिकार में सम्मान से मरने के अधिकार को शामिल मानते हुए व्यक्ति को ’लिविंग विल’ यानी इच्छामृत्यु का अधिकार दिया है। कोर्ट के इस फैसले के बाद अब कोई व्यक्ति जीवित रहते मौत की वसीयत करके कह सकता है कि अगर वह मरणासन्न और लाइलाज स्थिति मे पहुंच जाए तो उसके जीवन रक्षक उपकरण हटा लिए जाएं।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 12 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। अंतिम सुनवाई में केंद्र ने इच्छामृत्यु का हक देने का विरोध करते हुए इसका दुरुपयोग होने की आशंका जताई थी।

पिछली सुनवाई में संविधान पीठ ने कहा था कि ’राइट टू लाइफ’ में गरिमापूर्ण जीवन के साथ-साथ गरिमामय ढंग से मृत्यु का अधिकार भी शामिल है’ ऐसा हम नहीं कहेंगे। हालांकि पीठ ने आगे कहा कि हम ये जरूर कहेंगे कि गरिमापूर्ण मृत्यु पीड़ा रहित होनी चाहिए।

हालांकि केंद्र ने इच्छा मृत्यु यानी लिविंग विल का विरोध किया है। बता दें कि एक एनजीओ ने लिविंग विल का अधिकार देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उसने सम्मान से मृत्यु को भी व्यक्ति का अधिकार बताया था।

क्या है लिविंग विल

– लिविंग विल में कोई भी व्यक्ति जीवित रहते वसीयत कर सकता है कि लाइलाज बीमारी से ग्रस्त होकर मृत्यु शैय्या पर पहुंचने पर शरीर को जीवन रक्षक उपकरणों पर न रखा जाए।

– ‘लिविंग विल’ एक ऐसा लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए।

– ‘पैसिव यूथेनेशिया’ यानि इच्छामृत्यु वह स्थिति है जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की मौत की तरफ बढ़ने की मंशा से उसे इलाज देना बंद कर दिया जाता है।

– केंद्र ने कहा अगर कोई लिविंग विल करता भी है तो भी मेडिकल बोर्ड की राय के आधार पर ही जीवन रक्षक उपकरण हटाए जाएंगे।

क्या है एक्टिव और पैसिव यूथेनेशिया

– ऐक्टिव यूथेनेशिया में लाइलाज मरीज को इंजेक्शन दे कर मारा जाता है।

– पैसिव यूथेनेशिया वह स्थिति है जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की मौत की तरफ बढ़ाने की मंशा से उसे इलाज देना बंद कर दिया जाता है।

जानिए बाकी देशों में यह है व्यवस्था –

अमेरिका के कुछ राज्यों में इसकी मंजूरी है। जैसे ओरेगन, वॉशिंगटन और मोंटाना डॉक्टर की सलाह और उसकी मदद से मरने की इजाजत है। वहीं स्विट्जरलैंड में में यूं तो इच्छा मृत्यु गैर-कानूनी है, लेकिन व्यक्ति खुद को इंजेक्शन देकर जान दे सकता है। नीदरलैंड्स में मरीज की मर्जी के बाद डॉक्टर उसे इच्छामृत्यु दे सकता है। वहीं बेल्जियम में सितंबर 2002 से इच्छामृत्यु वैधानिक हो चुकी है। ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस और इटली जैसे यूरोपीय देशों सहित दुनिया के ज्यादातर देशों में इच्छामृत्यु गैर-कानूनी है।

निष्क्रिय इच्छामृत्यु बनाम सक्रिय इच्छामृत्यु

निष्क्रिय इच्छामृत्यु में मरीज जीवन रक्षक प्रणाली पर अचेत अवस्था में रहता है। वह तकनीकी तौर पर जिंदा रहता है, लेकिन शरीर और दिमाग निष्क्रिय होते हैं। इस स्थिति में परिवार की मंजूरी पर इच्छामृत्यु दी जा सकती है।

वहीं सक्रिय इच्छामृत्यु के मामले में मरीज खुद इच्छामृत्यु मांगता है। ऐसे मरीजों के ठीक होने की उम्मीद खत्म हो जाती है और उनके चाहते पर इच्छामृत्यु दी जा सकती है।

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