कोर्ट ने इस केस में सलमान खुर्शीद समेत करीब 32 लोगों की ओर से दायर हस्तक्षेप अर्जी पर दखल देने से इनकार करते हुए केस में अनावश्यक दखल से बचाने के लिए कदम उठाया। हालांकि पूजा के अधिकार का हवाला देते हुए दाखिल स्वामी की मूल याचिका को कोर्ट ने उचित पीठ के पास लेकर जाने को कहा है।
कोर्ट ने कहा कि केवल मुख्य पक्षकार जो कि हाईकोर्ट में थे, उन्हें ही इस केस में रहने इजाज़त होगी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील एजाज़ मकबूल ने उन दस्तावेजों की जानकारी दी, जो कोर्ट में जमा कराए गए है। मामले की अगली सुनवाई 23 मार्च को दोपहर 2 बजे होगी जहां सुप्रीम कोर्ट ये तय करेगा कि इस मामले को 5 जजों की संविधान पीठ के पास भेजा जाए या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि अगर दोनों पक्ष (हिंन्दू और मुस्लिम) समझौते के लिए राजी हैं, तो कोर्ट इसकी इजाजत दे सकता है, लेकिन हम किसी पक्ष को इसके लिए मजबूर नहीं कर सकते। कोर्ट ने ये टिप्पणी तब की, जब अदालत में दायर हस्तक्षेप अर्जी में बातचीत के जरिए सुलझाने की मांग की थी।
सरकार की ओर से पेश वकील तुषार मेहता ने हस्तक्षेप अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि कोई तीसरा पक्ष कैसे मुख्य पक्षकारों को समझौते के लिए कह सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि कोर्ट के बाहर आपसी सेटलमेंट के लिए हम किसी को नियुक्त नहीं करने जा रहे है, लेकिन अगर कोई समझौते के लिए वार्ता कर रहा है तो उसको हम रोक नही रहे है। वर्ल्ड पीस सेन्टर नामक संस्था के समझौते की मांग वाली अर्जी का जवाब देते हुए कोर्ट ने ये बात कही।
वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी से पूछा कि उनकी याचिका को कोर्ट क्यों सुने? जबकि वो इस मामले में मुख्य पक्षकार नहीं है। स्वामी ने कहा कि ये मेरा व्यक्तिगत पूजा का अधिकार है, इसलिए मैंने याचिका दाखिल की है। स्वामी ने कहा कि पहले मुस्लिम पक्षकारों को मेरे कुर्ता पजामा पर ऐतराज था, अब वो मेरे कोर्ट में अगली सीट पर बैठने पर ऐतराज कर रहे है।
सुप्रीम कोर्ट में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने एक बार फिर मामले को पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपने की मांग की। उन्होंने पुराने फैसले में खामियों का जिक्र किया, जिसमें कहा था कि इस्लाम धर्म के पालन करने के लिए मस्ज़िद ज़रूरी नहीं है। राजीव धवन ने कहा कि एक मुस्लिम और मस्जिद के रिश्ते को नए सिरे से परिभाषित करने की ज़रूरत है। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की मांग पर सुप्रीम कोर्ट 23 मार्च को पहले ये तय करेगा कि क्या इस मामले को पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपा जाए या नहीं? सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने दलील दी थी कि एक मुस्लिम और मस्जिद के रिश्ते को फिर से परिभाषित करने के लिए पांच जजों की बेंच को सौंपा जाना चाहिए।
राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था। फैसले में कहा गया था कि विवादित लैंड को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए। जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए जबकि बाकी का एक तिहाई लैंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए।
इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया। अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. वहीं, दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी। इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी। कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट में इसके बाद से यह मामला लम्बित है।
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