विस्तार से फैसले की व्याख्या करते हुए कहा गया कि भगवान और इंसान का रिश्ता उसका व्यक्तिगत संबंध है। ऐसे में इसका इस्तेमाल चुनावों में नहीं किया जा सकता है। वहीं अगर किसी उम्मीदवार को फैसले का उल्लंघन करते पाया गया तो उसका निर्वाचन रद्द करने का प्रावधान है।
मामले की सुनवाई करते हुए सात जजों वाली बेंच ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (3) के इस्तेमाल पर दिशानिर्देश तय किये। गौरतलब है कि आने वाले दिनों में यूपी समेत पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। जिसके चलते इसे अहम माना जा रहा है।
1995 में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने ‘हिंदुत्व’ को जीवनशैली बताया था। कोर्ट ने कहा था कि ‘हिंदुत्व’ के नाम पर वोट मांगने को हिन्दू धर्म के नाम पर वोट मांगना नहीं माना जा सकता। इस परिभाषा के चलते महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी समेत कई शिवसेना-बीजेपी विधायकों की सदस्यता रद्द होने से बच गई थी।
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