उच्चतम न्यायालय की पीठ में याकूब की याचिका पर मतभेद, फैसला 29 को

नयी दिल्ली, 28 जुलाई । उच्चतम न्यायालय की दो न्यायाधीशों की एक पीठ ने आज याकूब अब्दुल रजाक मेमन की उस याचिका पर खंडित निर्णय दिया जिसमें उसने 1993 के मुंबई बम विस्फोट मामले में 30 जुलाई को निर्धारित अपनी फांसी पर रोक लगाने का आग्रह किया है। पीठ ने मामला प्रधान न्यायाधीश को भेज दिया ।

याकूब मुंबई बम विस्फोट मामले में मौत की सजा पाने वाला एकमात्र दोषी है । न्यायमूर्ति एआर दवे ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया, वहीं न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने 30 जुलाई को फांसी दिए जाने के लिए 30 अप्रैल को जारी डेथ वारंट पर रोक लगा दी ।

अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी और मेमन की ओर से पेश हुए राजू रामचंद्रन सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा कि क्योंकि डेथ वारंट पर रोक लगाने के मुद्दे पर दोनों न्यायाधीशों का अलग-अलग निर्णय है, ‘‘यदि एक न्यायाधीश इस पर रोक लगाता है और दूसरा नहीं, तो फिर कानून में कोई व्यवस्था नहीं रहेगी ।’’

पीठ ने डेथ वारंट पर खंडित मत के चलते मामला शाम चार बजे त्वरित विचार करने के लिए प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू को भेज दिया ।इसने प्रधान न्यायाधीश से यह भी आग्रह किया कि वह एक उचित पीठ गठित करें और मामले को सुनवाई के लिए कल के लिए सूचीबद्ध करें। प्रधान न्यायाधीश ने मेमन की किस्मत का फैसला करने के लिए न्यायमूर्ति दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत और न्यायमूर्ति अमिताव राय की बड़ी पीठ का गठन किया। मेमन मुंबई विस्फोट मामले में मौत की सजा पाने वाला एकमात्र दोषी है जो गुरुवार को 53 वर्ष का होने वाला है।

नई पीठ बुधवार को इस बात पर फैसल करेगी कि 30 अप्रैल को मुंबई की टाडा अदालत द्वारा जारी मौत वारंट पर रोक लगाई जाए या नहीं और मेमन की याचिका के गुणदोष पर गौर किया जाए या नहीं। मेमन ने दावा किया है कि अदालत के सामने सभी कानूनी उपचार खत्म होने से पहले ही वारंट जारी कर दिया गया।

न्यायमूर्ति दवे का नजरिया था कि 21 जुलाई को मेमन की उपचारात्मक याचिका को खारिज करने में कुछ खामी नहीं थी और महाराष्ट्र के राज्यपाल उसकी दया याचिका पर फैसला कर सकते हैं क्योंकि दोषी कैदी अपनी सभी कानूनी उपचारों का प्रयोग कर चुका है। शीर्ष अदालत द्वारा मेमन की उपचारात्मक याचिका पर फैसले में सही प्रक्रिया का पालन नहीं करने की बात कहने वाले न्यायमूर्ति कुरियन ने कहा कि इस खामी को दूर किया जाना चाहिए और उपचारात्मक याचिका पर नए सिरे से सुनवाई होनी चाहिए। न्यायाधीश ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में मौत के वारंट पर रोक लगाई जानी चाहिए।

न्यायमूर्ति दवे ने इस मसले पर मनु स्मृति का एक श्लोक उद्धृत करते हुये कहा, ‘खेद है, मैं मौत के फरमान पर रोक लगाने का हिस्सा नहीं बनूंगा। प्रधान न्यायाधीश को निर्णय लेने दीजिये।’

एजेन्सी
vandna

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