नई दिल्ली। यह अपने देश के प्रति बेइंतहां प्यार और अपनी बहादुर सेना पर पूरा भरोसा ही है कि लद्दाख के चुशुल गांव के लोग देश के शूरवीरों की हर तरीके से मदद कर रहे हैं। सुन्न कर देने वाली सर्दी और सूखे पहाड़ों की ऊंचाइयां उनके हौसले के आगे बौनी हो गई हैं। अपने गांव को चीन के नियंत्रण में जाने से बचाने के लिए वे भारतीय सेना की हरसंभव मदद कर रहे हैं। इसके लिए वे ब्लैक टॉप के रूप में जानी जाने वाली हिमालय की चोटी की यात्रा करने से भी परहेज नहीं कर रहे।
स्वयं को जिंदा रखना बहुत बड़ी चुनौती
गौरतलब है वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जिन स्थानों पर तनाव की स्थिति है, उनमें से ज्यादतर जगहों पर वनस्पति के नाम पर घास का एक तिनका भी नहीं उगता है और ऑक्सीजन का स्तर अत्यंत कम है। साल के ज्यादातर महीनों में ऐसी कड़क सर्दी पड़ती है कि अगर दस्ताने पहने बगैर बंदूक के घोड़े को छू लिया तो अंगुलियों की खाल गल जाती है। ऐसे में स्वयं को सक्रिय और जिंदा रखना बहुत बड़ी चुनौती है।
द गार्जियन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 100 से अधिक पुरुष, महिला और युवा लड़कों के साथ अधेड़ चावल की बोरियां, ईंधन के डिब्बे और अन्य जरूरी सामानों के साथ ब्लैक टॉप की ओर बढ़ रहे हैं, जहां भारतीय सेना के सैकड़ों जवान टेंट लगाकर रहते हैं और चीनी घुसपैठ का मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं।
हर हाल में भारत में ही रहना है
आने वाले सर्दियों के महीनों में यहां तापमान शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है। ग्रामीणों को डर है कि अगर वे भारतीय सेना को चीन की सीमा से लगे पर्वतों पर अपने पोस्ट को सुरक्षित रखने और आगे कड़ाके की ठंड के लिए सैनिकों को तैयार करने में मदद नहीं करते हैं तो उनका गांव जल्द ही चीनी नियंत्रण में हो सकता है। चुशूल के एक 28 वर्षीय युवक टेरसिंग ने कहा, “हम भारतीय सेना को उनके पोस्ट को तुरंत सुरक्षित करने में मदद करना चाहते हैं। हम उन्हें जरूरी सामानों की आपूर्ति कर रहे हैं। एक दिन में कई बार हम जाते हैं। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सेना को बहुत अधिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़े।”
गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच लद्दाख के चुशुल क्षेत्र से पैंगोंग त्सो सहित कई अन्य जगहों पर संघर्ष की स्थिति बनी हुई है। हालांकि दोनों देशों के बीच बातचीत का दौर भी जारी है। भारत ने गालवान घाटी हिंसक झड़प ( जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे) के बाद दोनों देशों के बीच हथियारों का उपयोग नहीं करने की शर्तों को भी बदल दिया है।
तनाव कम करने के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी हाल ही में मास्को में मिले थे। बैठक के बारे में एक संयुक्त प्रेस बयान के अनुसार, दोनों नेताओं ने “भारत-चीन सीमा क्षेत्रों के साथ-साथ भारत-चीन संबंधों पर हुए घटनाक्रम पर स्पष्ट और रचनात्मक चर्चा की।”
सेना के वाहनों के काफिलों की आवाजाही जारी
ग्रामीणों के अनुसार जमीनी हालात ठीक नहीं हैं। पिछले एक सप्ताह में भारतीय सैनिकों ने सीमा पर निर्माण जारी रखा है। भारतीय सेना के वाहनों के काफिले ने सीमा पर चौकियों पर तैनात सैनिकों के लिए आपूर्ति और गोला-बारूद लाना जारी रखा है और सड़कों और इमारतों के निर्माण के लिए लगभग 100 खुदाई करने वालों को सीमा के साथ भारत की स्थिति को और अधिक सुरक्षित करने के लिए लाया गया है।
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक सुरक्षा विशेषज्ञ, मनोज जोशी ने कहा, “यह बहुत स्पष्ट है कि दोनों पक्ष सर्दियों के लिए वहां रहने की योजना बना रहे हैं। वे अनुमान लगा रहे हैं कि बातचीत का कोई हल नहीं निकलने वाला है।”
द गार्जियन के अनुसार, इस हफ्ते चुशुल के ग्रामीणों ने सैनिकों को ब्लैक टॉप पर आपूर्ति लाने के लिए अपने नॉन-स्टॉप प्रयासों को जारी रखा है। टेरसिंग ने कहा, “हाल ही में जिस क्षेत्र में संघर्ष हुआ था, वहां अभी तक सड़क नहीं है।” एक अन्य ग्रामीण कोंचक त्सेपेल ने कहा, “जिन नई जगहों पर चीनी और भारतीय सैनिक आमने-सामने हैं, वे जगह रहने के हिसाब से अनुकूल नहीं है। सेना को टेंट में रखा जा रहा है। मुझे नहीं पता कि वे बिना सड़क के रहने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे का निर्माण करने जा रहे हैं।”