रणजीत पांचाले, नयी दिल्ली (BareillyLive.in)। भारत के स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास विदेशों में भी रचा गया था। ऐसे देशों में एक देश सिंगापुर भी था जहां 1943 में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वहां बसे प्रवासी भारतीयों के परिवारों के अनेक युवक- युवतियों और बच्चों ने आज़ाद हिंद फौज में शामिल होकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आज़ादी की जंग लड़ी थी।
उन महान आजाद हिंद सेनानियों में से एक मेजर ईश्वर लाल सिंह का गत 5 अगस्त 2022 को सिंगापुर में निधन हो गया। वे सिंगापुर के ही नागरिक थे। उनकी अंतिम इच्छा दिल्ली के लाल किले को सैल्यूट देने की थी। पर स्वास्थ्य कारणों से वे भारत नहीं आ सके। अपनी यह इच्छा दिल में लिए 93 वर्ष की आयु में वे इस संसार से विदा हो गए। वे सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस के करीबी थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा सिंगापुर में गठित आज़ाद हिंद फौज की ‘बाल सेना’ के हवलदार मेजर थे और नेताजी के प्रिय थे।
यहां यह उल्लेखनीय है कि बालक सेना के सैनिक आज़ाद हिंद फौज के संदेश और संवेदनशील वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने के अलावा शत्रु पक्ष की जासूसी भी किया करते थे। 1945 में जापान की पराजय और आज़ाद हिंद फौज का सैन्य अभियान स्थगित हो जाने से ईश्वर लाल सिंह को गहरा धक्का लगा था। बाद में वे सिंगापुर की फौज में शामिल हो गए थे और 1984 में मेजर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।
मेजर ईश्वर लाल सिंह चाहते थे कि मृत्यु उपरांत उनकी अस्थियाँ लाल किले ले जाई जाएं। उसी लाल किले में जहाँ आज़ाद हिंद फौज ‘विजय परेड’ करना चाहती थी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जहाँ तिरंगा फहराना चाहते थे। गत 19 अगस्त की सुबह सिंगापुर से उनके भतीजे की पत्नी राधिका सिंह उनका अस्थि-कलश लेकर दिल्ली आईं। दो बजे लाल किले में उनके अवशेषों को सैन्य-सम्मान दिया गया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, ले.जनरल सी. बी. पोनप्पा (भारतीय सेना के एडजूटेंट जनरल), ले.जनरल करन यादव एवं अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारी, रिटायर्ड मेजर जनरल जी.डी. बख्शी, बीएसएफ के डीआईजी प्रेम चौहान व आजाद हिंद सेनानियों के परिजनों तथा अन्य गणमान्य नागरिकों ने उनके अस्थि-कलश पर पुष्प अर्पित करके उन्हें श्रद्धांजलि दी।
इस अवसर पर बोलते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नवंबर 2019 में अपनी सिंगापुर यात्रा के दौरान मेजर ईश्वर लाल सिंह से हुई अपनी भेंट का ज़िक करते हुए कहा कि वे एक ज़िंदादिल इन्सान थे। उनकी आवाज़ में बुलंदी देखकर वे सोच रहे थे कि जब ईश्वर लाल सिंह आज़ाद हिंद फौज में रहे होंगे तब उनकी आवाज़ कितनी बुलंद रही होगी। रक्षा मंत्री ने कहा कि वे जब भी आज़ाद हिंद सेनानियों से मिलते हैं उनमें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का अक्स देखते हैं।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व के बारे में रक्षा मंत्री ने कहा कि वे एक सच्चे और नेकदिल इन्सान थे। अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति भी उनके मन में अपनत्व का भाव था। वे मानवीय गुणों से सराबोर थे और वे अपने मूल्यों तथा आदर्शों पर आजीवन अडिग रहे।
रिटायर्ड मेजर जनरल जी. डी. बक्शी ने कहा कि आज़ाद हिंद फौज के शहीदों की स्मृति में दिल्ली में उपयुक्त स्थान पर स्मारक बनाया जाना चाहिए। आज़ाद हिंद फौज के कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन के पुत्र सर्वजीत सिंह ढिल्लन और इतिहासकार प्रो. कपिल कुमार ने भी दिल्ली में ऐसे स्मारक की आवश्यकता पर बल दिया। उल्लेखनीय है कि मेजर ईश्वर लाल सिंह ने भी भारत सरकार से दिल्ली में ऐसा स्मारक बनाने की मांग की थी।
यूनाइटेड इंडियन नेशनल आर्मी फैमिलीज़ एंड एक्टविस्ट एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी शुभम शर्मा ने कहा कि मेजर ईश्वर लाल सिंह की अस्थियों को भारत में राष्ट्रीय सम्मान की घटना का सिंगापुर सहित दक्षिण पूर्व एशिया के देशों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने बाल सेना में मेजर ईश्वर लाल सिंह के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्हें ईश्वर लाल नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही दिया था।
भारत के इतिहास में यह पहला अवसर था जब भारतीय मूल के किसी विदेशी नागरिक की अस्थियों को राष्ट्रीय सम्मान दिया गया। भारत सरकार ने उनकी अंतिम इच्छा को जिस तरह से पूरा किया, वह सराहनीय है। उनकी भस्म को भारत लाए जाने में ‘यूनाइटेड इंडियन नेशनल आर्मी फैमिलीज़ एंड एक्टिविस्ट एसोसिएशन’ के सदस्यों तथा इसके जनरल सेक्रेटरी शुभम शर्मा का विशेष योगदान रहा। शोक सभा का आयोजन भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया गया था।
शोकसभा में शिक्षाविद जगमोहन सिंह राजपूत, लेखिका मानोषी सिन्हा, यूनाइटेड इंडियन नेशनल आर्मी फैमिलीज़ एंड एक्टिविस्ट एसोसिएशन के मिल्कियत सिंह बाजवा, जगजीत कौर बाजवा, मनीष यादव, वरिष्ठ लेखक रणजीत पांचाले आदि देश के अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
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